________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या श्री ऋषभ चरित्रम् // 425 // व्याख्या-यथा अस्माकं-आचार्या उपाध्यायाश्च यावत् पर्युषणां कुर्वन्ति तथा वयमपि वर्षाकालस्य विंशत्या दिनैयुते मासे व्यतिक्रान्ते पर्युषणां कुर्मः अगिपि तत् पर्युषणाकरणं कल्पते परं न कल्पते तां रात्रि भाद्रशुक्लपञ्चमीरात्रि अतिक्रमयितुम् // 8 // // अथ पयुषणाविवेचनम् // उषणं वसनं यत्र, सामस्त्येन यथा बिधि, पर्युषणा च सा ज्ञेयाऽ-नन्तजीवसुखप्रदा // 1 // ज्ञाताऽज्ञातकभेदेन, द्विधा सा च गृहस्थिनाम् , अज्ञाता सा तु विज्ञेया, वर्षायोग्यपरिग्रहे // 2 // सम्प्राप्ते पीठपाटादौ, कल्पोक्तविधिना तथा, द्रव्यतः क्षेत्रतश्चैवं, कालभावेन संस्थितिः // 3 // क्रियते, सा च विज्ञेया, शुचिमाससिते दले, पूर्णिमायां परं योग्य, क्षेत्रस्य स्यादभावकः॥४॥ पञ्च पञ्च दिनानान्तु, वृद्धया भावे विशेषतः, दशपर्वतिथिक्रान्त्या, ह्यमा श्रावणेऽसिते // 5 // वार्षिककृत्यभेदेन, गृहिज्ञातकभेदतः, गृहिज्ञाता द्विधा बोध्या, तज्ज्ञानमतिशालिभिः // 6 // // तत्र वार्षिककृत्यानीत्थम् // सम्वत्सर प्रतिक्रान्ति, 1 लुचन 2 श्चाष्टमं तपः, 3 सईद्भक्तिपूजा 4 च, सङ्घस्य क्षामण मिथः // 6 // एतत्कृत्यविशिष्टा तु, भाद्रधवलपञ्चमे, कालिकाचार्यसम्मत्या, चतुर्थ्यामपि जायते // 7 // पर्युषणा तु सा ज्ञेया, गृहस्थज्ञातमात्रिका. यस्मिन्वर्षेऽधिको मास, स्तस्मिन्वर्षे त्वसौ विधिः // 8 // // 425 //