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________________ श्रीकहामुक्तावल्या भी ऋषभ 419 // तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्त-चरित्तनाणसंपन्न / थेरं च संघवालिय, गोयमगुत्तं पणिवयामि // 5 // छाया-तान्-सर्वान-शिरसा वन्दित्वा स्थिरसत्त्वचारित्रज्ञानवन्तं गौतमगोत्रिण स्थविरसंघपालितम प्रणिनमामि वन्दे // 5 // वंदामि अज्जहत्थि च, कासवं खंतिसागरं धीरं / गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेव सुद्धस्स ( // 6 // ) छाया-अहं क्षमासागरं धीरं ग्रीष्मकालस्य प्रथमे चैत्रमासे शुक्लपक्षे कालधर्ममुपागतं काश्यपगोत्रिणं आयहस्तिनं वन्दे // 6 // वंदामि अज्जधम्मं च, सुन्वयं सीललद्धिसंपन्नं / जस्स निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ ( // 7 // ) छाया-यस्य दीक्षामहोत्सवे पूर्वभवसङ्गतिवता देवेन यस्य मस्तकोपरि विचित्रशोभाशोभित छत्रं दधे तं सुव्रतगोत्रिणं शीललब्धिसम्पन्नं आर्यधर्म अहं वन्दे // 7 // हथि कासवगतं, धम्म सिवसाहग पणिवयामि, सीह कासवगृतं. धम्म पिय कासवं वंदे // 8 // छाया-अहं काश्यपगोत्रिण आर्यहस्तिनं तथा निर्वाणपदसाधकं आर्यधर्मश्च वन्दे // तथैव-काश्यपगोत्रिणं आयसिंह तथा काश्यपगोत्रिणं आयधर्मम् // वन्दे // 8 // तं वंदिऊग सिरसा, थिरसत्तचरित्त-नाणसंपन्न / थेरं च अज्जजंबु, गोयमगुत्तं नमसामि ( // 9 // ) .. छाया-तान् सर्वान् बन्दित्वा शिरसा-तदनु-स्थिरसत्त्वचारित्रज्ञानयुक्तं गौतमगोत्रिणं स्थविरार्यजम स्करोमि-नमामि-॥९॥ // 41 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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