________________ श्री कक्षामुक्तावल्या श्री ऋषभ चरित्रम् // 420 // मिउमदवसंपन्न, उवउत्तं नाणदसणचरित्ते। थेरं च नंदिरं पि य, कासवगुत्तं पणिवयामि // 10 // छाया-मधुरमार्दवादिगुणसम्पन्नं तथा ज्ञानदर्शनचारित्रवन्तं तथा काश्यपगोत्रिणं स्थविरनन्दितं-अहं वन्दे // 10 // तत्तो अ थिरचरितं, उत्तमसम्मतसत्तसंजुत्तं, देसिगणिखमासमणं, माढरगुत्तं नमसामि // 11 // छाया-ततः स्थिरचारित्रवन्तं तथोत्तमसम्यक्त्वसत्वधारिणं माढरगोत्रिणं देशिगणिक्षमाश्रमणं नमामि // 11 // तत्तो अणुओगधरं, धीरं मइसागरं महासत्तं / थिरगुत्तखमासमणं, वच्छ सगुत्तं पणिवयामि // 12 // छाया-ततः अनुयोगधारिणं धीरमतिसागरं महासत्त्वशालिनं तथा वत्सगोत्रिणं स्थिरगुप्त क्षमाश्रमणंअहं वन्दे // 12 // तत्तो य नाणदंसणचरित्त-तव सुहियं गुणमहंत, थेरं कुमारधम्मं, वदामि गणिं गुणोवेयं // 13 // छाया-तथा ज्ञानदर्शनचारित्रतपस्मु स्थिरचेतसं तथा गुणे महान्तं एवं गुणवन्तं स्थविरकुमारधर्म गुणिनं अहं वन्दे // 13 // मुत्तत्थरयणभरिए, खमदममवगुणेहि सम्पन्ने / देवइढिखमासमणे, कासवगुत्ते पणिवयामि // 14 // छाया-ततः सूत्रार्थमयरत्नसमलकृत तथा क्षमादममार्दवगुणोपेतं काश्यपगोत्रिणं देवर्द्धिगणिं क्षमाश्रमणं अहं वन्दे // 14 // // 7 // // 420 //