________________ श्री कल्प कावया श्री ऋषम चरित्रम् 414 // वज्रस्वामिमहाशिष्यो, वज्रसेनस्ततः कदा, सोपारकपुरं यातो, बिहरन् पुरसुन्दरम् // 44 // महेभ्यजिनदत्तस्य, तत्रासीदीश्वरी प्रिया, श्राविका लक्ष्यमूल्येन, क्रीतमन्नमपाचयत् // 45 // सपुत्रा मृत्युकामाऽसौ-यावक्षिपति वै विषम् , तावद् गत्वा गुरो ण्यिा, वज्रसेनो न्यवारयत् // 46 // सुभिक्षं भविता प्रात, र्मा चिन्ता करुतोऽधुना, इत्याश्वास्य सुखं तस्या-स्तदिनं ह्यगमत्क्षणम् // 47 // प्रात स्तत्र सधान्यानि, वाहनानि बहूनि च, आगतानि महानन्दो, नग- समवर्तत // 48 // मुभिक्षे जायमानेऽनु, जिनदत्तो महाधनी, जग्राह पावनी दीक्षां, सपुत्रो भार्यया सह // 49 // नागेन्द्रचन्द्रनिवृति, विद्याधराभिधाः सुताः, आसंस्तन्नामतः शाखा, श्चतुखः समवाभवन् // 50 // मू-पा-थेरे अज्जसमिए थेरे अरिहदिन्ने / थेरेहितो णं अज्ज समिएहितो गोयमसगुत्तेहिंतो इत्थ णं बंभदीवियासाहा निग्गया / बंभद्दीविया साहा निग्गया-इतितथाहि-अभीर विषये त्वासी, त्पुरमचलसंज्ञकम् , कन्नाबेन्नाभिधे नद्यौ, भात स्तस्य समीपके // 51 // ब्रह्मद्वीपोऽस्ति तन्मध्ये, तापसाश्रमभूषितः, आसीत्पञ्चशतो तत्र, तापसानां मनोरमा // 52 // तेष्वेकः पादलेपेन, भूमाविव जलोपरि, गच्छन् बेन्नां समुत्तीर्य, पारणार्थ प्रयाति च // 53 // जलालिप्तक्रमाम्भोज, एषोऽस्ति तपसो बलात् , महतीशक्तिरेतस्य, जैनेषु नच कश्चन // 54 // // 414 //