________________ श्रीकल्पमुकावल्या श्री ऋषभ चरित्रम् // 41 // सचित्तमथवाऽचित्तं, यद्वस्तु प्राप्यते त्वया / आनेयगुरुगीः कारी, भिक्षार्थश्च ततो ययौ // 6 // धनगिरिस्तथा पूर्वे, सुनन्दाया गृहे गतः / षण्मासवयाः पुत्रो, धनगिरेस्तयाऽर्पितः // 7 // भिक्षामिव तं पुत्र-मादाय, च गुरोः करें / प्रादायि भूरिभारत्वात् , कृतं वज्रेति नाम च // 8 // पठन्तीनाश्च साध्वीनां, शय्यातरगृहे वचः / पदानुसारलब्ध्याऽसौ, श्रुत्वा ज्यद्वयाः शिशुः // 9 // अध्यैष्टैकादशाङ्गानि, पालने स्थितिमाभजन् / पूर्वाराधितविद्यानां, किमासाध्यमिहास्ति वै // 10 // जाते त्रिवार्षिके पुत्रे, पुत्रार्थश्च ततः प्रसः / राजद्वारेऽभियोगं नु, चकार पुत्रगर्दिनी // 11 // प्रधानै तिनिष्णातै, रयम्पक्षो निरूपितः, यद्दत्तं वस्तु गृह्णन्तु, तस्यैवैष भविष्यति // 12 // इत्युक्ते भक्ष्यसामग्री, क्रीडनानि च सर्वतः, तदने स्थापिता मात्रा, किश्च जग्राह नो शिशुः // 13 // धनगिरिस्ततस्तस्मै, रजोहरणमाददे, मुदा जग्राह तद्वालः, सुचिरेप्सितवस्तुवत // 14 // ततो राज्ञाऽर्पितो बालो, धनगिरेविशालधीः, सिंहगिरिस्ततो दीक्षां, योग्यत्वादस्य सन्ददे // 15 // माताऽपि जगृहे दीक्षां, सुतज्ञानप्रबोधिता, ईदृक्षसृतरत्नस्य, प्राप्तिः पुण्येन जायते // 16 // एकदा त्वष्टवर्षान्ते, गच्छन्नुज्जयिनी पुरी, वृष्टौ च जायमानायां, यक्षचैत्यमशिश्रियत् // 17 // विनिवृत्तौ च वर्षायां, पूर्वभववयस्यकाः जृम्भकाख्याः सुरा मार्गे, समीयु नररूपिणः // 18 // कौष्माण्डीश्च ददु भिक्षा, तकसत्वपरीक्षकाः, अनिमेषाः सुरा एते, देवपिण्डो न कल्पते // 19 // // 41 //