________________ श्री कल्पमुक्तावल्या Fos LAIME चरित्रम् // 394 // भावार्थ:-जिनकल्पपरिकर्म योऽकार्षीद, यस्य संस्तवमकार्षीत् , श्रेष्टिगृहे सुहस्तीं तं, आर्यमहागिरिं वन्दे // 2 // वंदे अज्जमुहत्यिं मुणिपवरं, जेण संपई गया / रिद्धिं सव्वपसिद्धं, चारित्ता पाविओ परमं // 1 // भावार्थः--वन्दे आर्यसुहस्तिनं, मुनिप्रवरं येन संप्रतिः राजा / ऋद्धिं सर्वप्रसिद्धं, चारित्रात् प्रापितः परमाम् // 1 // // आर्यसुहस्ति सम्बन्धश्चत्यम् // साधुभ्यो भिक्षमाणं कं, दुर्भिक्षे द्रमकं पटुः // सुहस्ती दीक्षयामास, मृत्वा जज्ञे च सम्प्रतिः // 1 // तथाहि-मृत्वा च भिक्षुको जज्ञे, श्रेणिकाङ्गजकोणिकः, तस्योदायी पटे तस्य, नवनन्दमहीपतिः // 2 // तत्पट्टे चन्द्रगुप्तश्च, बिन्दुसारस्तदङ्गनः, अशोकस्तकपुत्रोऽभूत् , कुणालस्तस्य वै सुतः // 3 // तत्सुतः सम्प्रति जर्जातो, राजा विश्वयशा महान् , जातो यो लब्धवान् राज्य, दत्तं पितामहेन च // 4 // एकदा रथयात्राया, गच्छमार्यमुहस्तिकम् , ददर्श सम्प्रति दैवा, ज्जातिस्मृतिमवाप च // 5 // श्रुत्वोपदेशमाचार्या, च्छावकोऽजनि भावतः, त्रिखण्डॉ यो महीं चैत्यै, भूषयामास पुण्यवान् // 6 // तथाहि-सपादलक्षचैत्यानि, (१२५०००)जिनानां विश्ववन्दिनाम्। सपादकोटिकाश्चैवं (१२५०००००)प्रतिमा अतिशोभनाः षत्रिंशत्सहखाणि (36000) जीर्णोद्धारां स्तथैव च / पञ्चतत्त्वसहस्त्राणि, (95000) पित्तलप्रतिमास्तथा // 8 // बहशतसहसाणि, पवित्रसत्रशालिकाः / चकार सम्प्रति भूपो, धन्योऽयञ्जयताच्चिरम // 9 // अपि च-अनार्यानपि यो देशान् , करमुक्तान् विधाय च / साधुवेषधराः पूर्व, सेवकास्तत्र प्रेषिताः // 10 // C // 39 //