________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या श्री ऋषभ चरित्रम् // 390 // तेषु सिंहगुहास्थायी, मुनिरीाकुलेन्द्रियः, गुरूगा प्रतिरुद्धोऽपि, कोशागारमशिश्रियत् // 32 // चातुर्मासी स्थित स्तत्र, द्वितीयां दिव्यरूपिणीम् , वीक्ष्यताममरी कल्पांश्चलचित्तोऽजनि क्षणम् // 33 // बोधिता स्थूलभद्रेण, कोशाऽसौ शीलशालिनी, बोधयामास तं क्षिप्त्वा, खाले रत्नककम्बलम् // 34 // बोधितः संस्तयाऽऽगत्य, प्रोवाच मुनिराडयम् , गुरुपादान्तिकीभूय, समस्तसङ्घसन्निधौ // 35 // दुष्करकारक एकः, स्थूलभद्रोऽस्ति साधुपु, यदुक्तं गुरुभिः सत्यं, स्थूलभद्रो महामुनिः // 36 // / / यदुक्तम् // पुप्फफलाणं च रस, सुराण मंसाण महिलिआणं च / जाणंता जे विरया, ते दुक्करकारए वंदे // 1 // ॥भावार्थः॥ फलानामपि पुष्पाणां, मदिरामांसयोषिताम् , रसं ज्ञात्वा विरक्ता ये, वन्दे दुष्करकारकान् // 37 // बोधिता स्थूलभद्रेण, कोशा सन्धामचीकरत् , प्राप्तराज्यप्रसादेन, रंस्ये पुंसा परेण न // 38 // कदा च रथकारण, कोशा तुष्टस्य भूपतेः, मागिता साऽपि तं प्रीत्या, स्वीचक्रे वचनानुगा // 39 // गुणान् सा स्थूलभद्रस्य, प्रति तं नित्यमाजगौ, कलां स्वां रथकारोऽपि, दर्शयामास ताम्प्रति // 40 // पुजार्पितशरैरेष, दूरस्थामाम्रलुम्बिकाम् , तत्रस्थ एव कोशायै, चानाय्प दत्तवान् कली // 41 // गर्वितं तञ्च संवीक्ष्य, कोशाऽपि मतिशालिनी, प्राह पश्य कलां मेऽपि, कलाज्ञदर्पजित्वरीम् // 42 // सर्षपाणाश्च राशौ सा, कृत्वा चोद्धर्वश्च सूचिकाम् , तदने मुममाधाय, ननर्त नृत्यकोविदा // 43 // --नृत्यन्ती--प्राह च-न दुक्करं अंवयलुम्बितोऽणं, न दुक्करं सरिसवनच्चिआइ / तं दुक्करं तं च महाणुभावं, जं सो मुणी पमयवर्णमि वुच्छो // 2 // 1 पुष्पम् // 390 //