SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री ऋषम चरित्रम् श्रीकल्प मुक्तावल्या // 388 // प्रत्यक्षीभूय सूर्योऽपि, नीत्वा मां निजमण्डलम् , अदर्शयद ग्रहाचारं, सर्वश्चापि यथास्थितम् // 8 // एकदाकुण्डलाकारं, कृत्वा मिहिर पण्डितः, राजानं प्रोचिवानित्थं, पश्याद्भूतमिहाद्य भोः // 9 // अस्मिन्कुण्डलके राजन् , द्वापश्चाशत्पलात्मकः, पतिष्यति स्वयं मत्स्यो, गगनादतिवेगतः // 10 // भद्रबाहुस्तथा श्रुत्वा, प्रोवाचेति जनान्तरे, अवश्यं गगनान्मत्स्यः, पतिष्यति तथा न च // 11 // मार्गेऽर्धपलशोषेण, ५१साकेषुपलात्मकः, कुण्डलस्य तथा प्रान्ते, मत्स्यपातो भविष्यति // 12 // तथैव मिलितः सम्यग् , यदुक्तं भद्रबाहुना, प्रशंसा तस्य लोकेऽभूद, हीमुखो मिहिरोऽभवत् // 13 // एकदा नगरे तस्मिन् , दैवाद्भूपसुतोऽजनि, मिहिरेण कृता पत्री, चोक्तमायुः शताब्दिकम् // 14 // पुत्रजन्ममहानन्दा, उपायनकराञ्चिताः, आययु नांगरा स्तत्र, चाशीर्वादपरा द्विजाः // 15 // व्यवहाररहिता जैना, मुनयः पुत्रदर्शने, नागता इति चक्रेऽसौ, निन्दाञ्जनीं वराहकः // 16 // निन्दायाचिक्रयमाणायां, गुरुभिर्बालकस्य तु, सप्तभि सिरैर्मृत्यु, मार्जार्या कथितो ध्रुवम् // 17 // तदैव नगरात् सर्वा, विडालिका बहिष्कृताः, पुत्रस्नेहेन राझाऽपि, पुत्रस्नेहो हि धीपरः // 18 // सप्तमवासरे स्तन्यं, पिवतो बालकस्य च, विडालिक। मुखाकारा, गलापातेन हा मृतिः // 19 // गुरूणां सर्वतो जाता, प्रशंसा च गरीयसी, मिहिरस्य तथा निंदा, प्रससार जनान्तरे // 20 // मृन्वाऽसौ मिहिरः कोपाद, व्यन्तरीभूय सर्वतः, रोगादिभिश्च सङ्घस्य, चकारोपवावलिम // 21 // // 388 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy