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________________ श्री ऋषम चरित्रम् कावल्यां 1378 // लभट्टारकाचार्यश्रीमदानन्दविमलसूरीश्वरपट्टपरम्परागततपोनिष्ठसकलसंवेगिशिरोमणिपंन्यास दयाविमल गणिशिष्यरत्नपण्डितशिरोमणिपंन्यास सौभाग्यविमलगणिवरपादारविन्दचञ्चरीकायमाण विनेय सकलसिद्धान्तवाचस्पति अनेकसंस्कृतग्रन्थप्रणेता पंन्यासमुक्तिविमलगणिविरचितकल्पमुक्तावलिव्याख्यायां सप्तमं व्याख्यानं समाप्तमिति // अथाष्टमं व्याख्यानम् // अथ गणधरादिस्थविरावलीलक्षणे द्वितीये वाच्येस्थविरावलीमाह // मू-पा-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा इक्कारस गणहरा हुत्या // 1 // व्याख्या-तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य नव गणाः एकादश गणधराश्च // अभूवन् // 1 // मू-पा-से केणद्वेणं भंते / एवं वुच्चइ समगस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा इक्कारस गणहरा हुत्था // 2 // व्याख्या--॥ आशङ्कतेऽथ शिष्यः॥ तत्-केन-अर्थेन हेतुना-हे भदन्त / एवं उच्यते- श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य नव गणाः एकादश गणधराश्च अभूवन-कुतः अन्येषां गणगणेशानां तुल्यत्वात्-जावइआ जस्स गणा ताबइआ गणहरा तस्स इति प्रसिद्धः // 2 // // 378 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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