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________________ श्री कल्पमुक्तावल्या श्री ऋषम चरित्रम् सिद्धो यदी श्री ऋपभो जिनेन्द्रः, शक्रस्तदा कम्पितविष्टरः सन् ज्ञात्वाऽमृतंचावधिनाग्रराज्ञी, लोकादिपालात्मजनावलीढः // 1 // आगत्य यत्रास्ति प्रभोः शरीरम् , यातेऽपि जीवे रविकोटिदीप्रम् कृत्वा ततस्त्रिःपरिदक्षिणां स, विच्छायवक्त्रोऽजनिनेत्र नीर // 2 // नातिदूरे नवाऽसन्ने, कृताञ्जलिः शचीपतिः, पर्युपास्ते युगाधीशं, जीवन्तमिव भक्तितः // 3 // ईशानेन्द्रादयः सर्वे, त्वेवश्च कम्पितासनाः, ज्ञातनाभेयनिर्वाणाः, स्वस्वपरिजनाञ्चिताः // 4 // अष्टापदगिरौ यत्र, विद्यते भगवत्तनुः, तत्रागत्य विधानेन, कुर्वन्ति पर्युपासनाम् // 5 // प्रभुरागी ततः शक्रो, व्यन्तरैर्भवनाधिपः, देवै वैमानिकैरेव-ज्योतिष्कैर्वननन्दनात् // 6 // गोशीर्षचन्दनैधांसि, चानाय्य क्रमशस्ततः, चितास्तिस्रो विधानेन, कारयत्यमराधिपः // 7 // एकान्तीर्थपदेहस्य, गणधराणान्तथा पराम् , शेषमुनिशरीराणां, तृतीयामतिसुन्दराम् // 8 // आभियोगिकदेवैः स, क्षीरोदजलधेर्जलम् , आनाययति देवेशः, पवित्रमतिनिर्मलम् // 9 // क्षीरोदवारिभिः शक्र-स्तीर्थकृदेहमुत्तमम् , स्नपयति ततः सम्य-ग्गोशीर्षचन्दनेन च // 10 // अनुलिम्पति सानन्दं, ततो हंसकलक्षणम् , परिधापयतीद्धाभ, पटशाटकमुज्ज्वलम् // 11 // 1 / निर्वाणम् / // 375 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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