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________________ भी ऋषभ चरित्रम् श्रीकल्पमुक्तावल्या 11373 // व्याख्या-ऋषभस्य-अर्हतः कौशलिकस्य विंशतिः शिष्यसहस्राणि (20000) सिद्धानि चत्वारिंशत् आर्यिकासहस्राणि (40000) सिद्धानि (224) मू-पा-उसमस्स णं अरहओ कोसलीयस्स बावीस सहस्सा नव सया अणुत्तरोववाइयाणं, गइकल्लाणाणं जाव भदाण उक्कोसिया अणुत्तरोक्वाइसंपया हुत्था // 225 / / __व्याख्या--ऋषभस्य अर्हतः कौशलिकस्य द्वाविंशतिः सहस्राणि नव शतानि च (22900) अनुत्तरोपपातिनां गतिकल्याणानाम् यावत् उत्कृष्टा एतावती अनुत्तरोपपातिनां सम्पत् अभवत्-॥२२५।। मू-पा-उसमस्स गं अरहओ कोसलियस्स दुविहा अंतगड भूमी हुत्था / तं जहा-जुगंतगडभूमी य परियायंतगडभूमी य। जाव असंखिज्जाओ पुरिसजुगाओ जुगंतडभूमी अंतोमुहुत्तपरियाएअंतमाकासी // 226 // व्याख्या-ऋषभस्य अर्हतः कौशलिकस्य द्विविधा अन्तकृद्भूमिः अभवत्-तद्यथा-युगान्तकृमिः पर्यायान्तकृद्भूमिश्च यावत्-युगान्तकृद्भूमिरसङ्घयेयानि पुरुषयुगानि भगवतोऽन्वयक्रमेण सिद्धानि-पर्यायान्तकृद्भूमिस्तु भगवतः केवले समुत्पन्नेऽन्तर्मुहूर्तेन मरुदेवास्वामिनी अन्तकृत्केवलितां प्राप्ता // 226 // मू-पा-तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे अरहा कोसलिये वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमज्झे वसित्ता, तेवडिं पुव्वसयसहस्साई रज्जवासमझे वसित्ता, तेसीइं पुन्वसयसहस्साई अगारवासमज्झे वसित्ता, एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियागं पाउणिवा एगं पुचसयसहस्सं वाससहस्सूर्ण केवलिपरियागं पाउणित्ता पडिपुणं पुन्व // 37 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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