________________ श्री कल्पमुक्तावल्या // 369 // श्री ऋषभ चरित्र तावद्दध्यौ विवेकात्मा, बाहुबलिरुदारधीः, पितृतुल्याग्रजस्यास्य, हनन नोचितं मम // 43 // उत्पातिता च मुष्टयैषा, निष्फला च परं कथम् , विचार्येति च तां मुष्टिं, स्वशिरसि न्यपातयत् // 44 // लोचं कृत्वा महाधीर, स्त्यक्त्वा सर्वश्च तृणवत् , सर्वसावधनिमुक्तः, कायोत्सर्गमचीकरत् // 45 // भरतोऽपि च तं नत्वा, क्षमयित्वाऽपराधकम् , निस्सपत्नो ययौ रम्यं, निजस्थानं महायशाः // 46 // दीक्षापर्यायतो ज्येष्ठान् , लघुभ्रातॄन् नमाम्यहं, कयमिति पुनर्दध्यौ, बाहुबलिमहामतिः // 47 // उत्पत्स्यते यदा ज्ञानं, केवलञ्च तदा प्रभोः, पार्चे यास्यामि निश्चित्य, वर्षे कायेन संस्थितः // 48 // वर्षान्त सुन्दरी ब्राह्मी, भगिनीद्वयमस्य च, आगत्य भ्रातरं प्राह, गजादुत्तर साम्प्रतम् // 49 // तदुक्त्या बोधितश्चासौ, यावत्पादावुदक्षिपत् , तावत्तस्य समुत्पन्नं, केवलं शिवदायकम् // 50 // ततश्च भगवत्पार्वे, ययौ बाहुबलियमी, विहृत्य स्वामिना दीर्घ, सहैव जग्मिवान् शिवम् // 51 // भरतोऽपि महाराज, शुक्रवर्तिश्रियश्चिरम् , पुण्यलब्धां गतारिः सन् , बुभुजे सुरराडिव // 52 // आदर्शसदने जातु, मुद्रिकारहितां निजाम् , अङ्गुली वीक्ष्य पूतात्मा, सर्वानित्यमभावयत् // 53 // उत्पाद केवलज्ञानं, दशसहस्रधराधिपैः, देवतादत्तलिङ्गेन, शुशुभे भरतो मुनिः // 54 // पुनानः काश्यषी शान्तो, विहृत्य चिरमात्मवित , निर्वाणपदमालेभे, नित्याखण्डसुखोदयम् // 55 // म-पा-उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीइ गणा चउरासीइ गणहरा हुत्या // 213 // MARA // 36 //