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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या श्री स्वम | चरित्रम् // 368 // भरतेन ततो दुतः, प्रेषितः कुशलस्त्वरा / अष्ठनवतिबन्धूनां, सविधे बलशालिनाम् // 30 // मदाज्ञा माननीया वो, दूतास्येनेति चाब्रवीत् / सम्भूय प्रथमं तेऽपि, मिथश्चकु विचारणाम् // 31 // आज्ञां मन्यामहे भ्रातु, रुत युद्धञ्च कुर्महे // इति प्रष्टुं गताः पार्वे, प्रभोस्ते विशदाशयाः // 32 // प्रभुणाऽपि च ते सर्वे, वैताल्याध्यनेन च // दीक्षिताः प्रति बोध्याशु, मोचिता भवबन्धनात् // 33 // बाहुबलेस्ततो दूतः, प्रेषितो भरतेन वै // क्रोधान्धः सोऽपि ससैन्यो, युद्धाय समुपस्थितः // 34 // द्वादशाब्दं ततो युद्धं, भरतेन सहाकरोत् / रणधीरो महायोधा, हारितो न परं बली // 35 // बहुलजनसंहारं, द्वयो बुंध्वा च सैन्ययोः / विडोजाः सहसा तत्र, चाययौ करुणापरः // 36 // उपस्थितं द्वयो युद्धं, नरसंहारहेतवे, भ्रातृभावं समाश्रित्य, युद्धादस्मान्निवर्त्यताम् // 37 // यदि वां विजयाकांक्षा, क्रियतां युद्धमुत्तमम् , परीक्षा येन जायेत, न च लोकक्षयस्तथा // 38 // इति संबोध्य शक्रेण, स्वकान्यबलसूचकाः, द्रष्टिवाङ्मुष्टिदण्डाख्या-चतुर्युद्धाः प्रतिष्ठिताः // 39 // तेष्वपि वरयुद्धेषु, भरतस्य पराजयः, जज्ञे च भरतस्तेन, क्रोधान्धः समभूत्तदा // 40 // बाहुबलिनमुद्दिश्य, मुक्तश्चक्रवज्वलत्परम् , पराभवत्तु तन्नैव, चैकगोत्रीयकारणात् // 41 // तदामर्षवशेनैष, भरतं हन्तुमानसः, मुष्टिमुत्पाटय यावच्च, धावन् याति समीपके // 42 // // 368 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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