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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्यां श्री ऋषभ चरित्रम् // 36 // अम्बा न काचन परा मरुमातृतुल्या // या प्रेक्षितुगतवती प्रथमं सुतार्थम् / / तां मुक्तिसुंदरकनी शिवमार्गमेवं / सा विश्वपूज्यजननी जयताच्छिवाय // 17 // समवसरणे धर्म, स्वरुपं भगवानपि / कथयामास येनाशु, वैराग्यम्पापुरङ्गिनः // 18 // ऋषभसेनमुख्यश्व, पुत्रा भरतचक्रिणः / पञ्चशतानि तस्यैव, पोत्राः सप्तशतानि च // 19 // प्रव्रजिताश्च तन्मध्ये, ऋषभसेनकादयः // स्थापिताश्च गणाधीशा, चतुरशीति संख्यकाः // 20 // ब्राह्यपि दीक्षिता जाता, लेभे मुख्यपदं ततः, भरतोऽपि पुनश्चकी, श्रावकोऽजनि भावतः // 21 // सुंदरी व्रतकामाऽसी, दतिमारुपजित्वरी / स्त्रीरत्नं भरतेनैषा, निरूद्धा श्राविकाऽभवत् // 22 // चतुष्प्रकारसङ्घस्य, स्थापने यकृता श्रिये / जगतो याऽधुनाऽप्यत्र, राजते क्षेमकारिणी // 23 // त्यक्त्वा कच्छमहाकच्छौ, सर्वेऽपि तापसास्ततः / जगृहुर्भावतो दीक्षा, मृषभस्वामिपार्श्वके // 24 // निर्वाणान्मरुदेवायाः, सशोको भरतो भृशम् // हरिणा बोधितः स्थानं, भेजे स्वं तदनन्तरम् // 25 // भरतश्च ततः पूजा-कृत्वा चक्रस्य सदिने // प्रयाणञ्चक्रिवाब्जेतुं, षट्खण्डगतमेदिनीम् // 26 // वत्सरेः षष्टिसाहस्री, भरतो भरतस्य च // जित्वा च रसखण्डानि, नगरी स्वामशिश्रियत् // 27 // किञ्च चक्रं बहि स्तस्थौ, कारणं पृष्टवांस्ततः। प्रोचुरनुचराः स्वामिन, श्रूयतामस्य कारणम् // 28 // भ्रातरः सन्ति ते चक्रिन् ? नवनवतिसंख्यकाः / वशे ते नागता स्तस्माच्चक्रमेतद्वहिः स्थितम् // 29 // 8 // 367
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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