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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या श्री ऋषभ चरित्रम् 1366 // 8 इतः पुत्रवियोगार्ता, मुञ्चन्त्यश्रूणि नित्यशः, उपालम्भान् ददौ तस्मै, मरुदेवा च प्रत्यहम् // 6 // मरुदेवां पुरः स्कन्धे, कृत्वा च करिणः सुधीः, सर्वईया मुदितो यातः, पादौ वन्दितुमर्हतः॥७॥ समवसरणे याते, प्रत्यासन्नेऽतिपावने, पुत्रदि पश्य मातस्त्व, मुवाच भरत स्ततः // 8 // सौवर्णसिंहासनराजमानो, देवेन्द्रवारार्चितपादयुग्मः।। मामरावेष्टित विश्वभागो, दत्ते सुतस्तेऽमृतदेशनां शम् // 9 // प्रभ्वंघिसेवारतनिर्जराणाम् , संश्रृयते रम्यजयध्वनिः सः॥ तद्दश श्रुत्वेति माता भरतोक्तिमार्या, हर्षाश्रुधौताक्षिमला बभूव / / जाता तदैवाशु च दिव्यदृष्टिः, रोमानिताङ्गं दधती समन्तात्।११।। चश्चद्वरच्छत्रकचामरादि-सत्प्रातिहारीं कमलां निरीक्ष्य // विश्वस्य भर्तु ईदये विशाले, त्वाश्चर्यमालां दधतीति दध्यौ // 12 // मोहग्रस्तनरांश्च धिग् यत इह प्राणिवजो नैखिलः, स्वार्थ स्नेह मयोऽस्ति हा मम दृशौ निस्तेजसौ दुःखतः॥ पुत्रस्याभवतां महासुखजुषो बादं रुदत्या गृहे / निर्मोही सुत एष राजतितमां भुञ्जान ऋद्धिन्त्विमाम् // 13 // सुरनरासुरराजिनिषेवित-स्तनय एष कदा न च वाचिकम् / परिहिणोति ततो धिगिमं मुह, भव भवार्तिकरं शिववैरिणम् // 14 // इति च मनसि शुद्धा भावयन्ती जिनाम्बा-निखिलविषयबोधं केवलं प्राप्य सद्यः // अतिशयमुखमग्ना चायुषः संक्षयेन / विषयिमनुजकीटै दुलभां मुक्तिमाप // 15 // पुत्रो लोके ऋषभसदृशो नापरो येन महयां-भ्रान्त्वा भान्त्वोपचितममलं केवलाख्यं सुरत्नम् // साहस्राब्दं तदपि च चलं स्नेहबन्धे न मातु / देतं मन्ये विगतविषयैस्त्याज्यमत्रास्ति किं न // 16 // // 366 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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