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________________ श्रो कल्पमुक्तावल्यां चरि // 36 // // तथाहि // रिसहेससमें पत्त, निरवज्ज इक्खुरससमं दाणं / सेअंससमो भावो, हविज जइ मग्गिअं हुज्जा // 1 // ॥भावार्थः॥ नाभेयतुल्यं यदि चेत्सुपात्रम् ,दानं रसस्यात्र तथा सदिक्षोः। श्रेयांसतुल्यो यदि रम्यभावः, सम्मानितं स्यात्सफलं तदानुः।६२| एतानि त्रीणि वस्तूनि, महाभाग्येन लभ्यते, स्तुतिं कुर्वन् प्रभो लॊकः, स्वकागारमजीगमत् // 63 // ततः-भगवत्पारणास्थानं, न च कश्चिदुल्लंघयेत् , श्रेयांस प्रभु भक्तीष्टो, रत्नपीठमकारयत् // 6 // सन्ध्याद्वयश्च तं पीठं, पूजयामास भक्तितः, विना पूजां न च प्रात, भोजनश्चकृवान् कदा // 65 // .. विहरंश्च कदा स्वामी, बहलीदेशभूषणे, तक्षशिलापुरे सायं, ययावुद्यानमास्थितः // 66 // वनपालोऽपि चागत्य, बाहुबलिमजिज्ञपत् , श्रुत्वा मुदा च दध्यौ स, प्रातर्यास्यामि चर्द्धिमान् // 67 / / प्रतिमां पालयित्वेतो, विजहार सुख प्रभुः, साडम्बरं ययौ पश्चा-द्वाहुबलिमहाबली // 68 // गतः प्रभुरिति श्रुत्वा, चिखेद नितरामसौ, धर्मचक्रं ततश्चक्रे, रत्नीयं तत्र सुन्दरम् // 69 // आरक्षकनस्तित्र, नियोज्य वृत्तिपूर्वकम् , धर्मचक्रश्च वन्दित्वा, ययौ स्वनगरं पुनः // 7 // व्रतवासरमारभ्य, विहरन् नितरां प्रभुः, तत्रच्छद्मस्थकालच, प्रभोर्वर्षसहस्रकम् // 71 // // मिलित्वा च प्रमादकालः अहोरात्रम् // एवञ्च // // 36 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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