________________ BAS श्री ऋर चरित्र श्री कल्पमुक्तावल्या // 363 // श्वसुधारानिभावृष्टि, २श्चेलोत्क्षेपोऽतिमेदुरः, २देवदुन्दुभिराकाशे, गन्धोदपुष्पवृष्टिका // 48 // ५अहोदानमहोदान-मम्बरे घोषणा तथा, इमानि पञ्चदिव्यानि, ज्ञेयानि क्रमशो बुधैः // 49 // ततस्तत्राखिलो लोको, मिलितास्तापसाश्च ते, श्रेयांसः पुण्यवांस्तांश्च, प्रबोधयति सादरम् // 50 // साधुभ्यो भो! जना नित्य, सदगतिवाञ्छ्या विह, निर्दोषाहारभिक्षा हि, दीयते शिवदायिनी // 51 // एतस्यामवसर्पिण्यां, श्रेयांसककुमारतः, जाता च दानमार्गस्य, प्रवृत्तिरिति बुध्यताम् // 52 // कथं ज्ञातं त्वया लोकैः, पृष्टः श्रेयांस ऊचिवान् / स्वामिना सह सम्बन्ध, स्वकीयाष्टभवात्मकम् // 53 // ईशाने च यदा स्वामी, ललिताङ्ग सुरोऽभवत् / तदा निर्नामिका चाहं, तस्य देवी स्वयम्प्रभा // 54 // ततः पूर्वविदेहे च, विजये पुष्कलाभिधे / लोहार्गलपुरे स्वामी, वज्रजवाभिधोऽभवत् // 55 // तदाऽहं २श्रीमती भायाँ, तस्यैव भुवनेशितुः, तृतीये भगवानासीत्कुरावुत्तरके वरे // 56 / / युगलिको तदा चाहं, २युगलिनीति बुध्यताम् / सौधर्मे च ततो देवी, द्वावपि मित्रतां गतौ // 57|| वैद्यपुत्रस्ततः स्वामी, विदेहे त्वपराभिधे / जीर्णश्रेष्ठिसुतश्चाहं, नाम्ना च ५केशवः सखा // 58 // ततः कल्पेऽच्युते ६देवी, जातौ द्वौ प्रीतिशालिनौ / भगवान्पुण्डरीकियां, बचनाभः श्रुतोऽभवत् // 59 // षट्षण्डनायकश्चक्री, तस्याहं सारथिस्तथा / ततः सर्वार्थसिद्धाख्ये, विमाने निर्जरावुभौ // 6 // भगवतः प्रपौत्रोह, साम्प्रतं विश्वपूजिनः / एवं श्रुत्वा च सर्वोऽपि, मुदितोऽभूजनस्तदा // 61 // 1 दरिद्रनागिलपुत्रीति // 363