________________ श्री ऋष चरित्र मुकावल्या // 36 // पूजा जिनानामखिलप्रदानम् , भुक्तिकलाशान्तिकराभे मेलः / संस्थापनाप्रेक्षणशुद्धसन्धा-व्यापारवृत्तिस्त्त्विह नाथ ! मेऽस्ति // 41 // वामोऽपि सद्यः पटुराह नाथं, सङ्ग्रामगामी कलनाप्रवीणः / वामाङ्गसेवादिरतस्ततोऽहं, शुद्धः परं नैष इति त्वगादीत् // 43 // // अथ हस्तयुगलमुद्दिश्य प्रभुराह // सा राज्यपद्मा भवताऽर्जिताऽलम् , दीन: कृतार्थीकृत एव दानेः / तुष्टोऽपि दानं ह्यधुना गृहाण, कुर्वन्दयां दानिषु दानसिद्धः // 44 // सम्बोध्य पाणिद्वयमित्थमन्दं, श्रेयांसतश्चक्षुरसेन पूर्णम् / वः कारयन् पातु जिनः स आयो, लोकत्रयीवन्दितपादपद्मः // 45 // ॥श्रेयांसदानावसरे // वाग्दुग्धधारा नयनाम्बुधारा, मन्ये तदन्तर्वरधर्मवृक्षम् // धारारसस्य स्पर्धया तदानीं, सम्वर्धयामासुरभेद्यमूलाम् // 46 // रसेनानेन शुद्धन, दातृपुण्यौद्यवर्द्धकम् / वार्षिकतपसोऽकारि, पारणं स्वामिना ततः // 47 // // तदैव पश्चदिव्यानि जातानि // // 36 //