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________________ श्रीकल्प मुक्तावल्या // 36 // जिनोऽयमाद्यो भरते विशाले, भविष्यतीति प्रभुवचनाम:, स एष नाथः समतापयोधि, र्मयाऽद्य दृष्टः सुकृतेन भूम्ना // 35 // तदाऽस्य कश्चित्पुरुषः सदेक्षो, रादाय कुम्भान् भरितान् रसेन / उपयनार्थी बहुभक्तिभावा-च्छ्यांसभूपाय ददौ मुदाऽलम् // 36 // श्रेयांसभूपोऽपि प्रसन्नचेता, श्रादाय कुम्भं भगवन् गृहाण / भिक्षा सुयोग्यामिति सञ्जगाद, स्वामी दयालुः प्रससार पाणी // 37 // सर्वोऽपि तेन प्रथिताशयेन, प्रवञ्जलाविक्षुरसो निसृष्टः / एकोऽपि बिन्दुन च को पपात, सम्वर्धते किन्तु शिखोपरिष्टात् // 38 // यतः-माइज्जघडसहस्सा, अहवा माइज सागराः सव्वे / जस्सेयारिसलद्धी, सो पाणीपडिग्गही होई // 1 // पाणौ यदीये च घटाः सहसाः सम्पूर्णसिन्धुश्च तथाऽभिमाति / यस्येशी लब्धिरसौ महात्मा, सम्प्रोच्यते वन्दितपाणिपात्री // 39 // // अत्र कव्युत्प्रेक्षा // स्वामीकरं दक्षिणमूचिवांश्च, गृह्णासि भिक्षां कथमुच्यतां न / सोऽप्याह दातुरहमस्य पाणि, कुर्वे कथं नाथ ! शतप्रदायी // 40 // PATOHAR // 36
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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