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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्यां चरित्रम् // 347 // // प्रथमोऽयमकालमृत्युः // मातृपितृविहीना सा, कन्याऽतिरुपशालिनी, एकाकिन्यपि कान्तारे, विचचार सुलक्षणा // 16 // तादृशीं सुन्दरी दृष्टवा, नरा यौगलिका कदा, मान्याय नाभिभूपाय, तामादाय न्यवेदयन् // 17 // योग्येयं सर्वथा कन्या, सुनन्दानामशालिनी, भविष्यति च पत्नीय, मृषभस्य महामतेः // 18 // विचिन्त्येति गुणी नाभि, लोंकाना पुरतस्ततः, कथयित्वा च भावं स्वं, पवित्रां तामनीग्रहत् // 19 // ऋद्धिसिद्धीव तद्गेहे, सुनन्दा चसुमङ्गला, राराज सह ताभ्याञ्च, ववृधे ऋषभोऽप्यलम् // 20 // क्रमेण यौवनम्प्राप, तदा दध्यौ शचीपतिः, प्रथमजिनवैवाह-कृत्यं कार्यश्व नो विधिः // 21 // अनेकदेवदेवीनां, कोटिभिः सहितस्ततः, आगत्य स्वामिनश्चक्रे, वरकृत्यं स्वयं हरिः // 22 // द्वयोश्चकन्ययोरेवं, वधूकृत्यं सविस्तरम्, इन्द्राज्ञातत्परा देव्य, श्वकुश्च मुदिताननाः // 23 // भुञ्जानस्य ततस्ताभ्यां, विषयानृषभप्रभोः, षटूलक्षपूर्वयातेषु, जगदानन्ददायिनः // 24 // भरतबाह्यीरूपाहं, युगलश्च सुमङ्गला, बाहुबलिसुन्दरीरूपं, सुनन्दा सुषुवे युगम् // 25 // ततश्चैकोनपश्चाशत्पुत्राणां युगलानि च, सुमङ्गला महादेवी, सुषुवे भद्रदायिनी // 26 // म-पा-उसमेणं अरहा कोसलिये कासवगुत्तेणं तस्स णं पंच नामधिज्जा एवमाहिज्जन्ति / तं जहा-उसमेइ वा पढमराया वा पढमभिक्खायरे इ वा पढमजिणे इ वा पढम तित्थंकरे इ वा // 210 // // 34 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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