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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या श्री नेमिनाथ चरित्रम् 330 // धृत्वा च धैर्य त्वनगारिकैषा, प्रोवाच तं शीलविखण्डनेहम् // 23 // भो मान्य ? भो भद्र ? महानुभाव!, किन्तेऽभिलाषो नरकाध्वनोऽयम् / सावधसर्व परितो विहाय, वाग्छन् पुनः किं न च लज्जसे त्वम् // 24 // १तिर्यग्भुजङ्गा अपि तुच्छकौला, अश्नन्ति वान्तं न पुनः कदाऽपि / सद्वंशजातोऽप्यनगारिकस्त्वं, तेभ्योऽपि कि नीचतमोऽसि मन्ये // 25 // इत्यादिवाक्यैः प्रतिबोधितः सन् , श्रीनेमिपार्वे रथनेमिरेष / दुश्चीर्णमालोच्य तपोऽतभिप्त्वा, प्रक्षीणकर्मा शिवधाम प्राप // 26 // राजीमती चापि विजातबोधा, चाराध्य दीक्षां शिवधामतल्पा / सायुज्यमापाति प्रभूतकालात , सम्प्रार्थित नेमिजिनेश्वरस्य // 27 // ॥यदाहुः॥ छद्मस्था वत्सरं स्थित्वा, गेहे वर्षचतुःशतीम् / पञ्चवर्षशतीं राजी, ययौ केवलिनी शिवम् // 28 // // 174 / / मू-पा-अरहओ णं अरिहनेमिस्स अट्ठारस गणा अट्ठारस गणहरा हुत्था // 175 / / व्याख्या-अर्हतः-अरिष्टने मे:-अष्टादश (१८)गणाः-अष्टादश गणधराश्च-अभवन्-१७५।। म-पा-अरहओ ण अरिहनेमिस्स वरदत्त पामोक्खाओ अहारस समणसाहस्सीओ, उक्कोसिया समणसंपया हुत्था // 176 // 1 अगन्धनकुलोत्पन्नाः // 330 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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