________________ श्रीकल्पमुक्तावल्यां श्री नेमिनाथ चरित्रम् // 329 // द्वावपि विबुधौ जातौ, चाष्टमेत्यपराजिते / नवमेऽहं स्वयं नेमिश्चैषा राजीमती शुभा // 15 // भगवांश्च ततोऽन्यत्र, विहृत्य विश्ववन्दितः / रैवतके पुना रम्ये, क्रमशः समवासरत् // 16 // राजीमती ततोऽनेककन्याभिः परिवेष्टिता / रथनेमिस्तथा दीक्षाञ्जगृहतुः प्रभुपार्श्वके // 17 // राजीमती प्रभु नन्तुं, वजन्ती रैवताचले / वृष्टया च वाधिता मार्गे, गुहामेकामशिश्रियत् // 18 // तदगुहायां पुरा यातं, रथनेमिमजानती / क्लिन्नवासांसि चिक्षेप, परितः शोषणार्थिनी // 19 // लोकत्रयीमध्यललामवामा, सौन्दर्यजेत्रीमतिरम्यगात्रीम् / एनामसौ वीक्ष्य तथास्वरूपां, १विद्धोऽभवत्कामशरैनितान्तम् // 19 // लज्जां विहायैष कुलक्रमीयां, धैर्य तथा स्वात्मयशोविधायि, प्रावृद्धकामो हतधीविवेको, राजीमतीं प्राह सुभावसौम्याम् // 20 // हेदिव्यभे! सुन्दरदेहकाम्या, मन्ये त्वमेका जगतीह मुग्धा / देहो मुधा हा तपसा ययाऽयं, संशोष्यतेऽनङ्गकलाऽनभिज्ञे // 21 // स्वैरन्ततः क्रीडय चैहि भद्रे, दान्ते जनु नौं सफलं यतः स्यात् / भुक्त्वा च भोगा ससुखं मिथोऽग्रे, प्रान्ते तपः स्वक्षिणि! साधु सेव्यम् // 22 // आकर्ण्य तच्चेलमसौ दधार, राजीमती विश्वसती वरिष्ठा / // 329 // 1 नग्नामिति