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________________ श्री कल्पमुक्तावल्या भी नेमिनांच चरित्रम् // 328 // उत्पन्न केवलज्ञानः, सर्वभावाञ्जिनेश्वरः / विजानन् परिपश्य॑श्च, विहरत्यतिपावनः // 1 // रैवताख्ये महोद्याने, सहस्राम्रवणे घने / समुत्पेदे प्रभो स्वित्केवलज्ञानमुत्तमम् // 2 // उद्यानपालकः पश्चाद्विष्णोरिति व्यजिज्ञपत् / महद्धर्या वन्दितुं विष्णुर्भगवन्तं समाययौ // 3 // राजीमत्यपि प्रभ्वंघ्रि-पट्पदीभूतमानसा / आययौ प्रभुपादान्ति, मन्येऽहं मुक्तिकामिनी // 4 // प्रभूपदेशमाकर्ण्य, सद्यो वैराग्यदायिनम् / विरक्तभावनाभावा, जातास्तत्र सहखशः // 5 // वरदत्ताभिधो भूपो, दीक्षाञ्जग्राह सादरम् , विहाय ममतां सर्वा, द्विसहखनृपैः सह // 6 // राजीमत्याश्च भोः स्वामिन् , प्रीतिरेषा कुतस्तनी / त्वयीति हरिणा पृष्टे, ज्ञानवान् भगवानपि // 7 // धनवत्या भवात्स्वस्य, भवान्नव तया सह / प्रोचिवान् विस्तरं यांश्च, श्रुत्वा लोकाश्चमत्कृताः // 8 // भवेऽहं प्रथमे जातो, राजपुत्रो धनाभिधः / धनवती च नाम्नैषा, तदाऽभूगृहिणी मम // 9 // देवदेव्यौ ततश्चावां, देवलोके भवे द्वये, जज्ञावहे च भोः कृष्णः, प्रीतिभाजौ परस्परम् // 10 // विद्याधरस्ततश्चाहं-नाम्ना चित्रगतिर्भवे / अभवं तृतीये चैषा, जाता रत्नवती प्रिया // 11 // चतुर्थे च भवे चैव-श्चतुर्थकल्पक तथा / द्वावपि निर्जरौ जातो, पृथुस्नेहनिबन्धनौ // 12 // अपराजितभूपोऽहं, भवे जातश्च पञ्चमे / प्रियतमाऽभिधा राज्ञी, चैषा जाता च सुन्दरी // 13 // कल्पे चैकादशे षष्ठे, जातौ द्वापि निर्जरौ / सप्तमे शकभूपोऽह, चैषा कान्ता यशोमती // 14 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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