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________________ श्रीकल्प मुक्कावल्यां // 322 // श्री नेमिIFT नाथ चरित्रम् / / भावार्थः / त्वां प्रार्थयामि जननी बहुवल्लभत्वात् , सम्प्रार्थनां तनय ? कामपि पूर्वरूपाम् / पाणिग्रहजनकमात्सुखैकहेतुं, कृत्वा च दर्शय वधूमुखवारिज त्वम् // 89 // मुञ्चाग्रहञ्जननि ? सत्यमिमन्त्वमाशु , कान्तासुखे न च मनो रमते मदीयम्। . वाञ्छामि केवलमनन्तमकुण्ठरूपं, मुक्क्यङ्गना विमलसङ्गममार्यजुष्टम् // 9 // // अपिच // अत्यन्तरागिणि जने त्वपि या विरागा, रामाश्चता बुधजनो वत सेवते कः। या रागिणी विगतरागमयेऽपि पुसि, ताङ्कामये जननि ? मुक्तिवधूटिकां शम् // 91 // // अथ राजीमती // मङ्गलेऽमङ्गल व ? किमकाण्डे ह्युपस्थितम् , उक्त्वेति मूर्छनं प्राप, राजीमती महासती // 12 // सखीभ्याञ्चन्दनद्रावै, राश्वासिता ततस्त्वरा, लब्धसज्ञा सबाष्पं सा, प्रोच्चैः प्राहेति विह्वला // 9 // ॥किम्प्राहेत्याह॥ हा जायवकुलदिणयर ? हा निरुवमनाण ? हा जगस्सरण ? हा करुणायर सामी / मं मुतूणं कहं चलिओ // 4 // // अथ भावार्थः // हा यादवान्वयदिवाकर ? दिव्यबोध, ? हा विश्वबान्धव ! निधे ! करुणारसस्य ? / स्वामिन् कथञ्चलितवानसि मां विहाय / त्वत्पादपद्ममकरन्दपिपासुभृङ्गीम् // 9 // // अथवा // हा स्वान्त ? धृष्ट ? खल ? निष्ठुर प्रस्तराम ? निर्लज्ज ? जीवितमहो वहसेऽधुनाऽपि / // 322 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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