________________ श्री कल्पमुक्तावल्यां श्री नेमिनाथ चरित्रम् // 321 // निज्ज्ञरण नीरपाणं, अरण्णतणभक्खणं च वणवासो, अम्हाण निरवराहाण, जीविकं रक्ख रक्ख पहो // 3 // / / छाया // अरण्यघासाशनतनिवासि, शैलप्रपाताम्बुकपायिनां नः। निमन्तुकानां परिरक्ष रक्ष, सज्जीवितं नाथ ? दयासमुद्र ? // 85 // // भगवानपि // इत्थं पशूनाङ्करुणावचांसि, श्रुत्वा प्रभु मिरगाधसत्त्वः। प्रोवाच नाहं प्रणयं विधास्ये, मुश्चध्वमेतान् पशूरक्षका भोः // 86 / / श्रीनेमिवाचा पशूरक्षकास्ते, मुञ्चन्ति तान् सर्वपशूनजखम् / आश्चर्यभाक सारथि रेषकोऽपि, तत्स्यन्दनं बालयतिस्म दिव्यम् / / 87 / / // अत्र कविः॥ यश्चन्द्रबिम्बे विमलेऽस्ति हेतुः, श्रीरामसीताविरहे तथा यः। सोऽयङ्करङ्गोऽखिलविघ्नकेतु, मन्येऽनयोः पाणिविघातकोऽभूत् // 88 // राजा समुद्रो महिषी शिवाऽनु, मुख्यास्तथाऽन्ये चकिता रथान् स्वान् / सम्वालयन्ति स्म शिवासबाष्पं, प्राहेति नेमि किमु तात ? चैतत् // 89 // पत्थेमि जणणिवल्लह ? वच्छ तुम पढमपत्थण किंपि, काऊण पाणिगहणं मम दंसे निअवहवयणं // 1 // 1 श्री नेमिराजीमत्योः // 32 //