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________________ श्री कल्पमुक्तावल्यां श्री नेमि नाथ चरित्रम् // 31 // // चन्द्राननाऽपि मृगलोचनामाह / / कुरङ्गशावाक्षि! बिरिठिच रेना, गौरोरमावागृवृतिरुपजेत्रीम् / निर्माय नो चेदमुना वरेण, संयोजयत्यस्य च का प्रतिष्ठा / / / / इतश्च // राजीमती चापि ललाम लीला, तूर्यारवं मङ्गलसूचकं सा / आकर्ण्य तूर्णञ्जननीगृहाच्च, सख्यन्ति चञ्चत्तनु राजगाम // 58 // // अथ सख्यौ प्रत्युपालम्भः // मां बच्चयित्वा प्रथमं हि सख्यौ, चागत्य साडम्बरमावजन्तम् / सम्पश्यतश्चन्द्रमुखं वरं भो, स्तदर्शनोका च तदन्तराऽभूत // 59 // स्थित्वा च मध्ये तकयोः कुमारी, राजीमती सा प्रभुनेमिनाथम् , आलोक्य साश्चर्यमनन्तबोधं, हृद्येऽनवद्ये हृदयेऽनुदध्यौ // 60 // मन्ये नागकुमारोऽसौ, सविषः सोऽपि नो तथा, नानङ्गश्चाङ्गवानेष, सुरेशो द्विनेत्रवान् // 6 // मूर्तिमानेष मन्येऽहं, मत्पुण्यराशिरेव च, आत्मानमर्पण धातुः, करयोर्विदधाम्यहम् // 2 // येन मे वान्छनीयोऽसौ, विधात्रा विहितः पतिः, सौभाग्यगुणपाथोधि, र्यादबान्वयभास्करः // 6 // // पुनः-मृगालोचना प्राह // आक्तमान्तरं ज्ञात्वा, राजीमत्या मृगाक्षिका, सप्रीतिहासवक्त्राऽसौ, प्राह चन्द्राननामिति // 6 // // 31 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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