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________________ | श्री नेमि श्रीकल्पमुक्तावल्या // 315 // नाथ चरित्रम् // अथ लक्ष्मणा-उवाच // पत्युश्च मन्ये गृहिणी सहाया, शुश्रूषणादौ परकार्यगुम्फे / बाढं सुहृद् या कलवाग्विलासे, श्वेतोऽति कष्टेऽपि च मोमुदीति // 41 // सपल्लवं सत्फलभाजिशालं, यथाऽऽश्रयन्तीह जनाः समन्तात् / सकान्तमर्त्य मुनय स्तथाऽन्ये, पुनन्ति पादार्पणतः मुखेन // 42 // तेषां मुनीनां गृहमागतानां, प्राधूर्णकानामथवा परेषाम् 1 / भार्याम्विना कः कुरुतेऽर्चनादि, शोभा ततोऽस्याः कियती नरस्य // 43 / / गोपागनानां भगवान् यदुना, वाचाऽवरोधेन तथा तटस्थः / मौनावलिम्बि स्मितवक्त्रपा, संवीक्ष्य गोप्यो जग रेवमच्चैः // 44 // ____ अनिषिद्धं अनुमतमितिन्यायात्. किमुचुःउद्वाहमेष प्रभुनेमिनाथ, स्त्वङ्गी चकारेति च तामिरुक्तम् / हर्ष महान्तं निखिला विभेजु, झेंया च लोकोक्तिरपीत्यमार्यैः // 45 // // तहाहि // राजीमती ततः पुत्री, चोग्नसेनमहीपतेः / कृष्णेन मागिताः सद्यः, शङ्कितेनापि बन्धुना // 46 // 1 आ:-इति खेदे // 315 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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