________________ श्रीकल्पमुक्तावल्या श्रीपाश्वनाथ चरित्रम् // 307 // (1000) केवलज्ञानिनां एकादश शतानि // 1100 // वैक्रियलब्धिमतां षट्शतानि (600) ऋजुमतीनाम् षट् शतानि वादिनां द्वादश शतानि 1200 अनुत्तरोपपातिनां सम्पदा-अभवत् // 166 // मू-पा-पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतगडभूमी हुत्था / तं जहा-जुगंतगडभूमी य / परियायंतगडभूमी य / जाव चउत्थाओ परिसजुगाओ जुगंत गडभूमी तिवासपरियाए अंतमकासी // 167 / / ___ व्याख्या पार्श्वस्य अर्हतः पुरुषादानीयस्य द्विविधा मुक्तिगामिनां मर्यादा अभूत, तद्यथा-युगान्तकभूमिः पर्यायान्तकृद्भूमिश्च यावत्. चतुर्थ पट्टधरपुरुषं युगान्तकृद्भूमिः श्रीपार्श्वनाथादारम्य चतुर्थ पुरुषं यावत् सिद्धिमार्गों वहमानः स्थितः त्रिवर्षपर्याये कश्चिन्मुक्तिं गतः पर्यायान्तकृद्भूमौ तु केवलोत्पत्ते स्त्रिषु वर्षेषु गतेषु सिद्धिगमनारम्भः // 167 // मू-पा-तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता, तेसीई राइंदियाई छउमत्थपरियाय पाउगित्ता. देसूणाइ.सत्तरि वासाई केवलिपरियाय पाउणित्ता पडिपुण्णाइ सत्तरि वासाई सामण्ण-परियायं पाउणित्ता, एकं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता, खीणे वेयणिज्जाऽऽउयनाम-गुत्ते, इमीसे ओसप्पिणीए दूसम सुसमाए समाए बहु विइक्कंताए, जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे-सावणसुद्धे तस्स णं सावणसुद्धस्स अट्ठमी पक्खे णं उप्पिं संमेयसेलसिहरंसि अप्पचउत्तीस इमे, मासिएणं भत्तण अपाणएण, विसाहाहिं नक्खत्वेण जोगमुवागएणं, पुवाहकालसमयंसि वग्धारियपाणी कालगए विइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे // 168 // // 30 //