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________________ श्री कल्पमुक्तावल्यां // 305 // श्री पाचनाथ चरित्रम् - व्याख्या-पार्श्वस्य अर्हतः पुरुषादानीयस्य अष्टौ गणा अष्टौ गणधराश्च अभवन् तत्र एकवाचनिका यतिसमूहा गणाः तन्नायकाः सूरयो गणधराः, ते श्रीपार्श्वस्य अष्टौ, आवश्यके तु दश गणाः- दश गणधराश्च प्रोक्ताः-इह स्थानाङ्गे च द्वौ-अल्पायुष्कत्वादिकारणानोक्तौ-इति, टिप्पनके व्याख्यातम्- तद्यथा-शुभश्च 1 आर्यघोषश्च 2 वशिष्टः 3 ब्रम्हचारी 4 च सोमः 5 श्रीधरश्चैव 6 वीरभद्रः 7 यशस्वी च 8 // 160 // मृ-पा-पासस्सण अरहओ पुरिषादाणीयस्स अजदिन पामोक्खाओ सोलस्स समणसाहस्सीओ, उक्कोसिया समणसंपया हुत्था // 161 // ___ व्याख्या-पार्श्वस्य अर्हतः पुरुषादानीयस्य आर्यदत्तप्रमुखाणि षोडश श्रमणसहस्राणि // 16000 // उत्कृष्टा एतावती श्रमणसम्पदा-अभवत् // 161 // मू-पा-पासस्सणं अरहओ पुरिषादाणीयस्स पुप्फचूला पामोक्खाओ अतीसं अज्जियासाहस्सीओ, उक्कोसिया अज्जियासंपया हुत्वा // 162 // ___ व्याख्या-पार्श्वस्य-अर्हतः पुरुषादानीयस्य पुष्पचूलाप्रमुखाणि-अष्टत्रिंशत्-आर्यिकासहस्राणि (38000) उत्कृष्टा एतावती-आर्यिकासम्पदा-अभवत् // 162 // मू-पा-पासस्स णं अरहओ पुरिषादाणीयस्स सुव्वयपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी चउसहि च सहस्सा, उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था // 163 // // 305 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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