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________________ श्री कल्पमुकावल्या // 303 // श्री पार्श्वचरित्रम् नाथ उप्पज्जन्ति-तं जहा-दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा अणुलोमा वा पडिलोमा वा ते उप्पने सम्म सहइ खमइ , तितिक्खइ , अहियासेइ // 158 // ___व्याख्या-पावः अर्हन् पुरुषादानीयः व्यशीतिं रात्रिदिवसान् यावत् नित्यं व्युत्सृष्टकायः त्यक्तदेहो ये केचन उपसर्गाः उत्पद्यन्ते तद्यथा देवकृताः मनुष्यकृताः तिर्यक्कृता वा-अनुलोमा वा प्रतिलोमा वा तान् उत्पभान् सम्यक् सहते-तितिक्षते क्षमते अध्यासयति // / तत्र देवोपसर्गः कमठसम्बन्धी, स चैवं प्रव्रज्य जातुचित्स्वामी, विहरं स्तापसाश्रमे / न्यग्रोधाधश्च कूपान्ति, नक्तं प्रतिमया स्थितः // 1 // श्रीमत्पार्श्वमुपद्रोतुं, मेघमाली मुराधमः / क्रोधान्धः कापि चागत्य, विघ्नानेवमचीकरत् // 2 // स्वविकुर्वितशाल, वृश्चिकादिकजन्तुभिः / श्रीपार्श्व भीषयामास, दृष्टवाऽभीतं परं विभुम् // 3 // अन्धकारनिभान् मेघान् , विकुर्व्य गगने त्वरा / कल्पान्तमेघवदुष्टः, समारेभे च वर्षितुम् // 4 // सौदामिन्यो महारौद्रा, दिशि दिशि च प्रास्ताः / गर्जारवन्तथा चक्रे, ब्रम्हाण्डस्फोटसत्रिभम् // 5 // यावद्वारिणि सम्प्राप्ते, प्रभुनासाग्रभागके / आसनकम्पतस्तावद्धरणेन्द्रः फणीश्वरः // 6 // आगत्य सह कान्ताभिः, फणैश्छादितवान् विभुम् / अतिवर्षन्नमर्षेण, मेघमाली दुराशयः // 7 // धरणेन्द्रेण विज्ञातो, हक्कितोऽवधिबोधतः / प्रभुश्च शरणीकृत्य, स्वस्थानञ्जम्मिवांस्ततः // 8 // // 30 // .
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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