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________________ श्रीकल्पमुक्तावल्यां श्री पावमाथ चरित्रम् // 30 // ज्ञानीति लोकैः प्रभुपार्श्वनाथः, संस्तूयमानः सदनं स्वकीयम् // यात स्तपोऽसौ कमठोऽपि तप्त्वा, जातः कुमारेषु१ च मेघमाली // 13 // // 15 // मू-पा-पासे णं अरहा पुरिसादाणीए दक्खे दक्खपइण्णे, पडिरूवे, अल्लीणे भदए विणीए, तीसं वासाई अगारवासमक्षे वसित्ता पुणरवि लोअंतिएहि जीअकप्पिएहि देवेहिं ताहि इटाहि जाव एवं वयासी // 155 / / व्याख्या-पार्श्वः अर्हन्-पुरुषादानीयः-दक्षः दक्षप्रतिज्ञः रूपवान् गुणैरालिङ्गितः भद्रकः विनयवान्-त्रिंशद्वर्षाणि गृहस्थावस्थायां स्थित्वा-पुनरपि लोकान्तिकाः-जीतकल्पिकाः देवाः ताभि इष्टाभिर्वाग्मि र्यावत् एवं अवादिषुः॥१५५॥ मू-पा-जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जाव जय जय सई पउंजन्ति // 156 / / व्याख्या-जय जयवान् भव, हे समृद्धिमन् जय, जयवान् भव, हे कल्याणवन् / यावत् जय जय शब्द प्रयुञ्जन्ति // 156 // मृ-पा-पुचि पिण पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स माणुस्सगाओ गिहत्यधम्माओ अणुत्तरे आहोइए, तं चेव सव्वं जाव- दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, जे से हेमंताणं दुच्चे मासे-तच्चे पक्खे पोसबहुले तस्स णं पोसबहुलस्स इक्कारसी दिवसे णं पुव्वण्हकालसमयंसि विसालाए सिबियाए सदेव-मणुयाऽसुराए परिसाए त चेव सव्वं-नवरं वाणारसि नगरिं मज्ज़ मज्झेणं निम्गच्छइ / निग्गच्छित्ता जेणेव असोगवरपायवे, तेणेव मेघकुमारेविति // // 30 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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