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________________ श्रीकल्प मुक्तावल्यांश // 287 // व्याख्या-तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य इन्द्रभूतिप्रमुखाणि चतुर्दश / गणधरवाद श्रमणानां सहस्त्राणि उत्कृष्टा एतावती श्रमणसम्पदा अभवत् // 134 // मू. पा.-समणस्स भगवओ महावीरस्स अज्जचंदणापामोक्खाओ छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ, उक्कोसिया अज्जिया सम्पया हुत्था // 135 // व्याख्या- श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य आर्यचन्दनाप्रमुखाणि षट्त्रिंशत् आर्यिकाणां सहस्रणि उत्कृष्टा एतावती आर्यिकासम्पदा अभवत् // 135 // म. पा.-समणस्स णं भगवओ महावीरस्स संख-सयगपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउणहिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था // 136 // व्याख्या-श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य शंखशतकप्रमुखाणां श्रमणोपासकानाम् एकलौकोनविंशतिसहस्राणि उत्कृष्टा श्रमणोपासकानां सम्पदा अभवत् // 136 // मू.पा.-समणस्स M भगवओ महावीरस्स सुलसारेवईपामोक्खाणं समगोवासियाणं तिन्निसयसाहस्सीओ अहारससहस्सा, उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था // 13 // व्याख्या-श्रमायास्य भगवतो महावीरस्य सुलसारेवतीनमुखाणां श्रमणोपासिकानाम् त्रीणि लक्षाणि अष्टादशसहस्राश्च उत्कृष्टा एतावती श्रमगोपासिकानां सम्पदा अभवत् // 137 // GANEMALEHENARIYA READA 287 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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