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________________ Itणधरवाद श्री कल्पमुक्तावल्यां // 270 // 'विगताश्च गुणा यस्य, छाअस्थिकदशास्थिताः, अतो विभुश्च विज्ञेयः, केवलज्ञानवानसौ // 10 // केवलज्ञानवश्वेन, सर्वव्यापक एव च, एवम्विधो हि, य श्चात्मा, दोषलेशविवर्जितः // 101 // तादृशः पुण्यपापाम्यां, युज्यते न कदाचन, वेदसत्यार्थ एषो हि ज्ञायतां त्वयका धिया // 102 // सत्यार्थज्ञानतिग्मांशु-ध्वस्तसन्देहतैमिरः, मण्डितपण्डितश्चापि, परिवबाज पूर्ववत् // 103 // ___" इति षष्ठो गणधरः" 6 आकर्ण्य दीक्षितान्सर्वान् , मौर्यपुत्राहपण्डितः, द्वेरेफ. इव पाथोज, प्रभुपादाब्जेपाश्रयत् // 104 // देवताविषये चैनं, संदिग्धं प्राह तीर्थपः, सत्यार्थ वेदवाक्यस्य, न जानासि च शङ्कितः // 105 // को जानाति मायोपमान् गीर्वाणान्-इन्द्रयमवरुणकुबेरादीन् // वितर्कप्रश्नवाच्यत्र, कः शब्दो निर्जरार्थके, अमराणामतोऽभाव-प्रतीतिः सुतरामिति // 106 // // स एष यज्ञायुधी यजमानोऽजसा स्वलॊकं गच्छति // इत्यादिवेदवाक्यैश्च, देवसत्ता प्रतीयते, इतिविरोधपाशेन, बद्धत्त्वात्तव संशयः // 107 / / अविचारितमेतद्धि, सन्ति देवा स्तथाविधाः, अत्रैव तेऽमराः सर्वे, दृश्यन्ते त्वयका मया // 108 // यच्च वेदे च वै देवा, मायोपमा निरूपिताः, अनित्यसूचनार्थश्च, विद्वि सत्येन भो बुध ! // 109 // प्रत्यक्षमेव देवानां, दर्शनेन गतभ्रमः, मौर्यपुत्रोऽपि जग्राह, सशिष्यै श्चरितम्मुदा // 110 // // 27 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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