SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीकल्पमुक्तावल्या गणधरखाद // 268 // // इति चतुर्थों गणधरः // 4 // तमपि दीक्षितं श्रुत्वा, मुधर्मानामपण्डितः, स्वसंशयं निराकर्तु, वीरपदमथाश्रयत // 79 // भवेऽस्मिन् यादृशः प्राणी, परेऽपि तादृशो भवेत् , बैलोम्यं जायते नेव, संशयोऽस्येति चाभवत् // 8 // इत्थं सन्देहवन्तं तं, जगाद भगवान् स्वयम् / यथास्थं वेद वाक्यं भो!, भावयसि न कि बुध ? // 81 // ॥घेदवाक्यञ्चेत्थम् // पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते, पशवः पशुत्वम् // इत्यादीनि // मृत्वा च पुरुषो भूयः, पुरुषत्वं प्रपद्यते, लभन्ते पशवोऽप्येवं, पशुत्वं च भवान्तरे // 82 // शालिबीजाद्यथा शालि-नेतु गोधमता कचित् , एवं मत्यच्चि मयों हि, न गोवाजिगजादयः // 8 // एतानि वेदवाक्यानि, सादृश्य सूचकानि च, भवान्तरेऽपि तस्मानो, योनेलोम्यमत्र वै // 84 // (अपरवेदवाक्यम् ) शङ्गालो वै एष जायते यः सपुरीषो दह्यते ॥इत्यादीनि।। इत्यादि वेदवाक्यानि, भवान्तरविरुद्धताम् , दर्शयन्तीति सन्देह, स्तवास्ति हृदये चिरात् // 85 // सत्यार्थ शृणु भो विप्र, येन त्वं मोदमेष्यसि, तावकोऽयं परामर्शो, न चारुः संशयात्मकः // 86 // यतः-पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते पशवः पशुत्वम् // इति // इत्यादिवेदवाक्याना-मयमों हि सुन्दर, मार्दवादिगुणोपेतो, यदि स्याच्छुभधीनरः // 87 // आयुः कर्म च बध्वाऽसौ, मनुष्यस्य भवान्तरे, मनुष्यो जायते भूय, इत्यर्थवादिनी श्रुतिः // 88 // // 268 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy