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________________ गणधरवादः दया दानं दमश्चापि, क्रमशोऽर्थों विभाव्यताम् , इत्यादिवेदवाक्येभ्य, आत्मसिद्धिः सुनिश्चिता.:॥१३१॥ श्रीकल्पमुक्तावल्यां भोग्यस्य वस्तुनो भोक्ता, कश्चिदस्तीति निश्चितम् , भोजनवसनादीनां, यथा भोक्ता च मानवः // 132 // ततो भोग्यं शरीरश्च, भोक्ता देही ति बुध्यताम् , कालत्रयेऽपि चात्माऽसौ, सिद्ध एव न संशयः // 23 // // 26 // विद्यमानक भोक्तृत्वं, शरीरमिदमस्ति वै, भोज्यत्वादोदनादीव, ततः सिद्धोऽनुमानतः // 24 // दनि सर्पि स्तिले तैलं, काष्ठेऽग्निः सौरमं सुमे, चन्द्रकान्ते सुधायद्वत्तथाऽत्माऽपि पृथक्तनोः // 25 // तीर्थकराप्तोपवचः सुधामिः, श्री इन्द्रभूति गतसंशयोऽभूत् , सदभावनः पञ्चशतैः स्वशिष्य, जग्राह दीक्षाम्भवबन्धभेदीनीम् // 26 // वीरास्यपद्मात्रिपदीन्तदानी मुत्पत्तिनाशस्थिरबोधरूपाम् सम्प्राप्य धीमान् गुरू गौतमोऽसौ, श्रीद्वादशाङ्गीं व्यरचत्पवित्राम् // 27 // (त्रिपदी चेयम् ) उपन्नेइ वा (1) विगमेइ वा (२)धुवेइ वा (3) इति // इति प्रथम गणधरः // 1 // RN श्री इन्द्रभूति बुधराजिमान्य, श्रुत्वाऽनुजोदीक्षितमग्निभूतिः, दयौ किमेतेऽघटितं वदन्ति,प्रायोन लोकोभुवितत्त्ववेत्ता॥२८॥ जातु द्रवेयुः सकला महीध्रा, एवज्वलेयु हिमराशयस्ते, वैश्वानरः शैत्यमथाश्रयेत, जातुस्थिरःस्तादिह वा नभस्वान् // 29 // Eचन्द्राकुलिका यदि का पतन्तु, लोणी बिलान्तविशता त्कदावा, बन्धुस्तथा मेश्रुतिपारगामी, नो हारयेदत्र परात्कदाऽपि॥३०॥ ASHRAWAARINEETIRE 26 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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