________________ गणधरवादः भीकल्पमुक्तावल्या // 256 // एक कोऽप्यजितो वादी, जिता अप्यजिता ततः, एकदा खण्डितं शीलं, यदि सत्या च खण्डिता // 6 // आश्चर्यमिदमेवास्ति, वादिनोऽने कशो जिताः, कुतोऽ यम्पुन रुद्भूतः, कीर्तिचन्द्र विधुन्तुदः // 65 // यतः-छिद्रे स्वल्पेऽपि पोतः किं पाथोधौ न निमज्जति, एकस्मिन्निष्टके कृष्टे, दुर्गः सर्वोपि पात्यते // 66 // इन्द्रभूतिस्ततो विद्वान् , स्वयं वादिजयाय च, रचयित्वा स्वकं वेषं, गमनाय मति व्यधात् // 67 // तिलकैः शास्त्रनिर्दिष्टे, दशै रुपशोभितः, चामीकरमहापूत, यज्ञोपवीतधारकः // 6 // धृतपीताम्बरद्योती, कण्ठपृष्ठलुठच्छिखः, सधूमवद्दिीप्ताङ्गो, वाडवान्वयभास्करः // 69 / / पुस्तकपाणिभिः कैश्चि-स्कमण्डलुकरैः परैः / सुदर्भपाणिभिः कश्चिद-गीयमानैर्यशः परैः // 7 // भारतीकण्ठकाकल्प ! वादिजयरमालय ! / वादिमदमुखाभञ्जिन् ! वादिदन्ति मृगाधिप ! // 7 // वादिवादतरूच्छेदिन् ! वादीश्वर लिहक्रम ! / विजितानेकवादाढय ! ज्ञाताखिल पुराणक! // 72 // कुमतध्वान्त दीप्तांशो ! वादिवृन्दमहीपते! / वादिविजयप्रज्ञेश ? शिष्यीकृतबृहस्पते ! // 73 // वादिघूकदिवानाथ ! वादिमेघ प्रभञ्जन ! / वादि सर्प विहङ्गेश ! वादिगारुड केशव ! // 7 // वादिसिन्धु महागस्त्य ! वादिदेवशचीपते ! / वादिमृगालिपञ्चास्य ! वादिदर्प क्षयङ्कर ! // 75 // वादियुथ महामल्ल ! वादि व्याधि चिकित्सक! / वादिवृन्दमनःशल्य ! वादिशालभदीपक ! // 7 // इत्येवगुरुपादानां, विरुदावलिमुत्तमाम् / गायद्भिविलसद्वक्त्र, जय जय ध्वनाननैः // 77 // पञ्चशतैर्विद्वच्छात्रै, रिन्द्रभूति रथामरै / इन्द्र इव हरित्कीर्तिः, शोभमानः समन्ततः // 78|| // 25 //