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________________ गणधरवादः श्री कल्पमुक्तावल्या // 255|| शैला येनाग्निना दग्धाः, पुरः के तस्य पादपाः, उत्पाटिता गजा येन, का वायोस्तस्य पुंभिका // 51 // गता गौडदेशोद्भवा दूरदेशम् , भयाजर्जरा गौर्जरा स्त्रासमीयुः, मृता मालवीया स्तिलंगा स्तिलंगो-वा, जज्ञिरे पण्डिता मद्भयन // 52 // अरे लाटजाताः क याताः प्रगष्टाः, पटिष्ठा अपि द्राविडा वीडयार्ताः, अहो वादिलिप्साऽऽतुरे मय्यमुस्मिन् , जगत्युत्कटं वादिदुर्भिक्षमेतत् // 53 // प्रतिदेश महावादि, जयिनि मयि कोऽपरः, सर्वज्ञपदसंद्योती, वादी चैपोऽवशिष्यते // 54 // इन्द्रभूति धियां सूति. दध्यौ च हूदि विस्मितः, निजानुजमुवाचष-मग्निभूतिं विलक्षणम् // 55 // अग्निभूते ! यथाऽपको, मुग्ददालीकणः कचित , रन्धने दृश्यते तद्वद, वादी चैपोऽवशिष्यते // 56 // ततोऽहं यामि तञ्जतु मग्निभूति रथोवदत , पूज्यबन्धो ! प्रयासोऽय-कीदृशः कीटवादिनि // 57 // उत्पाटयितुमम्भोज, नीयते नेन्द्रवारणः, आज्ञां देहि ममैवातो, गत्वा जेष्यामि वादिनम् // 58 // इन्द्रभूति रुवाचाथ, बन्धो ! साधु परं शृणु, अल्पज्ञोऽयङ्कुधी वादी, मच्छात्रेणापि जीयते // 59 // श्रुत्वाऽस्य नाम दुःश्राव्यं, स्थातुमत्र न शक्यते, वैरिणि गृहमायाते, निर्भरङ्केन मुप्यते // 60 // तिलयन्त्रे तिलः कश्चिद्, घण्टिकायां यथा कणः, तृणानां छेदने तार्ण-म्पयोधि शोषणे सरः // 61 // कुट्टयत स्तुषः कोऽपि, यथाऽवतिष्ठते तथा, अवशिष्टो ममाप्येष, वादी तिष्ठति साम्प्रतम् // 62 // सह्यते न तथाप्येष, वादी वादीजिता मया, एकोऽप्यग्निकणः शत्रु, Hशाय परिकल्पते // 63 // . . // 255 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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