SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणधरवाद श्रीकल्पमुक्तावल्या // 253 // एकैकविषये तेषा-मासीत्सन्देहशङ्खला, सर्वज्ञत्वाभिमानेन, न पृच्छन्ति मिथः परम् // 22 // सकुटुम्बाश्च ते विप्रा, वेद४४ वेदशतानि वै, अन्येऽपि बहवश्चासन् , नामानि कियतामिह // 23 // शङ्कर ईश्वर श्वाथ, शिवो गङ्गाधर स्तथा, महीधरो भूधर श्चैवं, सल्लक्ष्मीधर पण्डितः // 24 // मुकन्द विष्णुगोविन्दनरोत्तमनरायणाः, उमापतिः श्रीपति-श्चापि, विद्यापति गणेश्वरौ // 25 // जयदेव महादेव, श्रीकण्ठ नीलकण्ठका, इत्यादयो द्विजा स्तत्र, मिलिता यज्ञमण्डपे // 26 // सुरासुरा स्तदाऽऽकाशा-द्वन्दितुश्चरणाम्बुजम् , वीरस्यागच्छतो वीक्ष्य, मिथः -प्रोचुश्च वाडवाः // 27 // यज्ञस्य महिमा भूयान् , मन्त्राहूता इमे सुराः, अहो पश्यन्तु पश्यन्तु, चायान्ति यज्ञमण्डपम् // 28 // ईक्षमाणांश्च तान् याव-त्पश्यन्ति द्विजसत्तमाः, प्रभुपार्श्व ययु देवा, विहाय यज्ञमण्डपम् // 29 // इत्थम्वीक्ष्य विषेदुस्ते, ब्राह्मणा यज्ञसंस्थिताः, सर्वज्ञ वन्दितुञ्चैते, यान्तीति शुश्रुवु जनात् // 30 // सर्वज्ञशब्दमात्रेण, कुपित इन्द्रभूतिकः, आश्चर्यमिदमाश्चर्य, चिचिन्त हृदि विस्मितः // 31 // वादिध्वान्तदिवानाथे, सर्वज्ञे मयि राजति, सर्वज्ञत्वम्परं स्वस्य, ख्यापयत्यत्र कः परः // 32 // श्रूयते दुःश्रवञ्चैत-न्नितराङ्कर्णभेदकम् , सति सिंहे कुरङ्गस्य, कूर्दनं किमु शोभते // 33 // बालिशम्वश्चयेत्कश्चि-द्धृत स्तत्र न वेदना, प्रतारिताः परं देवा, अनेन धृर्तमौलिना // 34 // सर्वज्ञं माम्विहायैते, यज्ञमण्डपमेव च, देवाः सन्तोऽपि सम्भ्रान्ता, स्तत्पार्श्वमुपयन्ति च // 35 // तीर्थ नीरं यथा काका, भेका इव सरोवरम् , शीतलं सौरभं रम्य-चन्दनं मक्षिका इच // 36 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy