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________________ SE // गणधरवादः / / गणधरवाद श्रीकल्पमुक्तावल्या // 25 // - - जाते च केवलज्ञाने, जिनस्य विश्ववन्दिनः / सिंहासनानि शक्राणां, ध्वजा इव चकम्पिरे // 1 // तेऽवधिज्ञानतो ज्ञात्वा प्रोत्पलकेचलायम् / ज्ञानं श्री वीर देवस्य, विश्व विश्व प्रकाशकम् // 2 // सदेवास्त्वरयाऽऽगत्य, चतुःषष्ठि सुरेंश्वराः / समवसरणश्चक्रुः दुर्गत्रयविराजितम् // 3 // नचात्र विरते योगो, जाननपि जिनेश्वरः / स्वाचारमुररीकृत्य, देशनान्ददिवान् क्षणम् // 4 // वृष्टिव चोपरे साऽभूद्देशना निष्फला तदा / अपापानगरस्येशो, महासेनवनं ययौ // 5 // क्रतुङ्कारयत स्तत्र, सोमिलाह द्विजस्य वै / ओकसि ब्राह्मणा विज्ञा, मिलिताः सन्ति सुन्दरे // 6 // तेषु तत्र त्रय श्वासन् , सोदारा भूमुरोद्धाः / इन्द्रभूत्यग्निभूति च, वायुभूतिस्तथाऽपरः // 7 // चतुर्दशमहाविद्या, पारगाः श्रुतिशालिनः / पञ्च पञ्चशतैः शिष्यैः, परिवृताः समन्ततः // 8 // सुधर्माव्यक्तनामानौ, पण्डितौ द्वौ विलक्षणौ / आगती भूषितौ शिष्यैः, पञ्च पञ्चशतै स्तथा // 9 // मण्डित मौर्य पुत्राख्यौ, भ्रातरौ शास्त्र कोविझे / साई त्रिशत सच्छिष्य, रागतौ तत्र धीधनौ // 10 // अकम्पिताचल भ्राता, श्री मैतार्यप्रभासकाः, चत्वारः पण्डिता अंक त्रिशत शिष्यमण्डिताः // 11 // इस्थमेकादशा स्तज्ज्ञा, स्तासन् यज्ञमण्डपेः / सन्दिहानाः क्रमेणेषा, सन्देहोऽत्र निगद्यते // 12 // अस्ति. जीको नः वा. चासीसितेर्हि संशयः / अस्ति कर्म न का चायमग्निभूतेः सुसंशयः // 13 // - / / 251 // -
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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