________________ 5 श्रीकल्पमुक्तावल्या प्रभुउपस र्गाधिकारः // 229 // गत्या स्वामीस्थित स्तत्र, प्रतिमास्थो लसद्युतिः, गोशालो हेलनां कृत्वा, प्रतिमाया मुखे स्थितः // 35 // बहुशालाभिधे ग्रामे, ततः स्वामी प्रजग्मिवान् , शालवनमहारामे, स्थितः प्रतिमया प्रभु // 355 / / व्यन्तरी तत्र शालार्या, बहूपसर्गकारिणी, न च चाल मनाक स्वामी, ध्यानान्मेरुरिवापरः // 356 // क्षमयित्वाऽपराधान् सा, व्यन्तरी चातिविस्मिता, महिमानं प्रभोश्चक्रे, भृङ्गी भूय पदाम्बुजे // 357 / / लोहार्गलाभिधे ग्रामे, भगवांश्च ततो ययौ, राज्यं कुर्वश्च यत्रासी-जितशत्रु महीपतिः // 358 // तत्कर्मचारिभिः, किश्च सगोशालजिनेश्वरः, हारिकोऽयमिति ज्ञात्वा, भूपाभ्यर्णमनीयत // 359 // निमित्तज्ञोत्पल स्तत्र, चागतोऽभूत्पुरैव वै, उपलक्ष्य प्रभुं सोऽपि, जितशत्रुमजिज्ञपत् // 360 // किं कृतञ्च त्वया राजन्, सिद्धार्थभूपसू रयम् , वर्द्धमानो महाज्ञानी, मुमुक्षु र्जितमन्मथः // 361 // श्रुत्वैवम्भूभुजा मुक्त, त्रिलोकीनायक प्रभुः, क्षन्तव्यो, मेऽपराधश्च, चक्रे विज्ञप्तिमीदृशीम // 362 // ततश्च जग्मिवान् स्वामी, पुरमतालनागरे, यत्रासीच्छकटोद्याने, मल्लिनाथ जिनालयः // 363 // नगरोद्यानयो मध्ये, स्थितः प्रतिमया विभुः, वग्गुरश्रावकस्ताव-मल्लिपूजनहेतवे // 364 // नगराच्छकटोद्यानङ्गच्छन्नासीच्छुभाशयः, ईशानेन्द्रोऽपि तावच्च, वीरवन्दनहेतवे // 365 // आगनो यान्तमाहेनं, भो भो बग्गुर ! वग्गुर !, प्रत्यक्षजिनमुल्लंध्य, जिनबिम्बार्चनाय किम // 366 // अग्रे गच्छसि य चैष, चरम स्तीर्थनायकः, महावीरो महाधीरो, भवबन्धनभेदकः // 367 / / - // 229