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________________ श्री कल्प मुक्तावल्यां प्रभुउपसगाधिकार // 224 // सगोशालप्रभु स्तस्मा-चौराग्राममजीगमत् , राज्यगुप्तवृतान्तीय-चारिको हारिकामिमौ // 283 // इति कृत्वा च गोशालं, प्रभुश्चापि सुरक्षकाः, प्रक्षिपन्त्यगडे किश्च, क्षिप्तः गोशालकः पुरा // 284 // प्रभु द्यापि तावच्च, भगिन्या वुत्पलस्य च, जयन्ती चापरा सोमा, संयमपालनाक्षमे // 285 / / संन्यासिन्यौ प्रभुं वीक्ष्य, चोपलक्ष्य च रक्षकान् , प्रोचतू रे किमाकारि, सिद्धार्थभूपभूरयम् // 286 // महाधीरो महावीरो, ज्ञात्वेति रक्षकै रपि, मुक्तः स्वामी ततः सद्यो, गोशालोऽपि पुनःस्तथा // 287 // पृष्ठचम्पां ततः प्राप्त, श्चातुर्मासतुश्चर्थकम् , चातुर्मासक्षपणेन, तत्रैव कृतवान् प्रभुः // 288 // पारणाञ्च बहिः कृत्वा, ययौ कायङ्गलभिधम्, सन्निवेशन्ततः स्वामी, श्रावस्त्याञ्जग्मिवान् पुनः // 289 // रम्यभागे बहिः पुर्याः, स्थितः प्रतिमया प्रभुः, गोशालं प्राह सिद्धार्थों, भोक्ष्यसे नरमांसकम् // 29 // त्वमद्य सोऽपि तच्छुत्वा, निषेधाय गत स्त्वरा, वणिग्गेहेषु भिक्षार्थ, बभ्राम हृदि शङ्कितः॥२९१॥ पितृदत्तो वणिक् कश्चि-दासी त्तत्र पुरान्तरे, मृतापत्यप्रसूस्तस्य, श्रीभद्रा प्रियगेहिनी // 292 // , अपत्यमृतिदुःखेन, दुःखिताऽऽसीनिरन्तरम् / पप्रच्छ निमित्तज्ञं सा, शिवदत्ताभिधं कदा // 293 // पुत्राणाजीवनोपाय-स्तेनापि खलु दर्शितः उत्पन्नमृतबालस्य, मांसभक्षणहेतुकः // 294 // मृतबालकमांसञ्चे-त्पायसेन विमिश्रितम् / दीयते कस्यचिद्भिक्षो-स्तदा जीवति पुत्रकः // 295 // तयाऽपि विधिनाऽनेन, पुत्रजीवितकामया / गोशालाय मुदा दत्तं, मांसमिश्रितपायसम् // 296 // RANDIYASADASEANHADARASWARAN 224 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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