________________ गाधिका श्रीकल्पमा एको ररक्ष तां नावं, जलमध्ये निमजतीम् , युयुधे चापरः साकं, सुदंष्ट्रेण सुरेण च // 227 // मुक्तावल्या तं निर्जित्य प्रभोः सत्त्वं, रूपश्चानुपम सुरौ, गायन्तावपि नृत्यन्तौ, महोत्सवपुरस्सरम् // 228 // 1220 // सुरभिनीर पुष्पाणां, कृत्वा वृष्टिं मनोरमाम, कृतकृत्यौ लसद्वक्त्री, स्वधाम जग्मतुः सुखम् // 229 // उत्तीर्य तरितः शान्तो, निर्विघ्नं विहरंस्ततः, पुरं राजगृहं रम्यं, ययौ ज्ञाननिधिः प्रभुः // 230 // नालान्दायाश्च वर्षार्थ, तन्तुवायस्य कस्यचित्, शालैकदेशमाश्रित्य, तनिदेशात् स्थितः प्रभुः // 231 // मासक्षपणमुद्दिश्य, तस्थौ तत्र निरामयः, आययौ तत्र गोशालो, मंखपुत्र इति श्रुतः // 232 // मलिनाममङ्खोऽस्ति, कश्चिच्चित्रकला पटुः, सुभद्रा तस्य भार्याऽऽसीद् भद्रभावा मनोरमा // 233 // चित्रपटमिषेणैतौ, भ्रमन्तौ नगरादिषु, क्रमाच्छरवणग्राम, भिक्षाशीलौ समागतौ // 234 // बहुगोधनविप्रस्य, शालायां तत्र सा सुत, जनयामास गोशाल, इति नाम कृतन्ततः // 235 // मासक्षपणके पूर्णे, श्रेष्टी श्री विजयाभिधः, कूरादिबहुसद्भकत्या, प्रतिलम्भितवान् प्रभुम् // 236 // पञ्चदिव्यानि जातानि, महिमानं निरीक्ष्य च, त्वच्छिष्योऽस्मीति गोशालः, प्रोवाच स्वामिनम्प्रति // 237 // स्वबुध्या जातशिष्योऽसौ, प्राणवृत्तिश्च भिक्षया, कुर्व स्तस्थौ च तत्रैव, स्वामिपादाश्रयीभवन् // 238 // द्वितीयपारणायां च, पक्वान्नेन सुलम्भितः, नन्देन श्रेष्ठिना भक्त्या, स्वामी विश्वाङ्गितारकः // 239 // तृतीयपारणायां च, सुनन्देन जगत्पतिः, परमान्नेन सद्भकत्या, लम्भितो भाग्यशालिना // 24 // / 220 //