________________ - श्री कल्पमुक्तावल्यां प्रभुउपसधिकारः // 20 // चक्रध्वजाङ्कुशादीनि, लक्षणानि निवीक्ष्य च, / सामुद्रिकस्ततः कश्चि-त्पुष्पनामाचिचिन्त च // 83 // एकाकी कोऽपि प्रयाति, चक्रवर्तीति लक्षणैः / सेवागत्वाऽस्यकुर्वेऽहं, भविता मे महोदयः // 84 // तत्पदन्यासमार्गेण, त्वरितं त्वरितं स कः, / वर्धमानपदाम्भोज-माश्रयद्वित्तकामुकः // 85 // भगवन्तं निरीक्ष्यासौ, वीतरागं गताम्बरम् , दध्यौ मनसि हा कष्टं, सामुद्राध्ययन मुधा // 86 // एतल्लक्षणयुक्तोऽपि, भूत्वा यदि च संयमी, / सहतेऽनेककष्टानि, क्षेप्यं पुस्तकमम्भसि // 87 / / दत्तोपयोगशक्रोऽपि, शीघ्रं तत्र समाययो, / अभिवाद्यप्र शान्तं, पुष्पं प्रोवाच शङ्कितम् / / 88 // सामुद्रशास्त्रनिष्णात, माविषीद मनोऽन्तरे, / शास्त्रन्ते सत्यमेवास्ति, यतोऽयञ्जगतीपतिः // 89 // पूज्यानामपि पूज्योऽसि, देवानामधिपस्तथा, / निधानं सम्पदामेष, तीर्थेश्वरो भविष्यति // 9 // कायोऽस्य रहितो दिव्यः, स्वेदामयमलादिभिः, / सुरभिः श्वासवायुश्च, सर्वगन्धजयी ध्रुवम् // 11 // धवलं गोपयस्तुल्यं, रुधिरामिषकन्तथा, / वर्तते जिननाथस्य, सर्व हि वचनातिगम् // 12 // बाह्याभ्यन्तरवर्तीनि, लक्षणानि जिनेशितुः, / प्रवक्तुङ्केन शक्यानि, वत्सरैरपि धीजुषा // 93 // वदन्नेवश्च तं पुष्पं, सन्मणिकनकादिभिः, / यक्षाधीशनिभं कृत्वा, ययौ शक्रोऽपि धामनि // 94 // यदृच्छालाभसन्तुष्टः, सामुद्रशास्त्रकोविदः। अमन्दानन्दरोमांचः, प्रस्थिवान् स्वगृहम्प्रति // 95 // आत्मारामो महानन्दः, सर्वकल्याणकारकः,। भगवानपि विश्वेशो, विजहार ततः सुखम् // 16 // // 20 //