________________ वाशा महोत्सवः श्री कल्पमुक्तावल्या // 19 // वपुस्तथाऽलक्तरसेन काचि, मुग्धालिलेपातिमनोहराङ्गी // 9 // काचिच्च नीविं शिथिलां न बुध्वा, काञ्चीन्दधाना करपङ्कजेन, यान्ती ललज्जे न विचित्रमेतद्, दृष्टाऽपि लोकैर्मुदितान्तरात्मा // 10 // काचिन्मृगाक्षी चपला कृतार्ध, स्नाना क्षरन्नीरसुकेशमाला, मार्गे प्रयान्ती नटिनीव जाता, हास्याय मन्ये जनु न केषाम् // 11 // काचिद्वहन्ती मुकुरं करेण, काचिच्छलाको नयनाञ्जनीयाम् , काचिद्रुदन्तं तनयम्विहाय, सञ्जग्मिवानुत्सवदर्शनोत्का // 12 // श्रीवीरलोकेश्वरदर्शनेन, चात्मानमन्या बहुमन्यमाना, वेगेन यान्ती पथि भूषणानि, स्रस्तान्यपि नैव तदाऽग्रहीच्च // 13 // ओजश्च तेजो विमलं सुरूपम् , सौभाग्यमेवं वचनातिगं च, संवीक्ष्य काचिज्जिननायकस्य, मेने महाश्चर्यमहो विधातुः // 14 // पाण्यम्बुजाभ्यां शुचिमौक्तिकौघे, रवाकिरन् काञ्चनचञ्चलाक्ष्यः, काश्चिज्जगुमन्जुलमङ्गलानि, प्रमोदपूर्णा ननृतुश्च काश्चित् // 15 // / // 19 //