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________________ श्रीकल्प मुक्तावल्या प्रहणम् ततो नन्दिमहीशेन, चादिष्टाः पुरुषाः स्वकाः। उत्पाटयन्ति यावद्धि, शिबिकाम्प्रभुपाविताम् // 6 // तावच्छक ईशानेन्द्र-श्चमरेन्द्रबलीन्द्रको / उपर्यधस्तनीं वाहां, दक्षिणोत्तरवतिनीम् // 7 // भवनेशा व्यन्तरा श्चैव-मिन्द्रा वैमानिकास्तथा / ज्योतिष्का कुण्डलाकल्प, किरणोत्तमदीप्तयः // 8 // पुष्पवृष्टिं पञ्चवर्णाङ्कर्वन्तो मोदमेदुराः। दुन्दुभीस्ताऽयन्तश्च, प्रोत्पाटयन्ति शैबिकाम् // 9 // ततः शक्र ईशानेन्द्रः, शिबिकायाश्च वाहिकाम् / त्यक्त्वा वीजयतः प्रीत्या, चामराणि प्रभोः पुरः // 10 // प्रस्थिते शिविकारूढे, वर्द्धमाने जिनेश्वरे / प्रफुल्लकमलैर्वापी, शरदीव मनोहरैः // 11 // अतसीकणिकाराणांश्चम्पकानान्तथैव च / तिलकानाञ्च सत्पुष्पैर्वनराजीव विश्वतः // 12 // गच्छद्भिरमरैरेवं, सदारैश्वारुभूषणैः / शुशुभे गगनाभोगो, दधत् सौन्दर्यमुत्तमम् // 13 // भम्भाभेरीमृदङ्गीय, शङ्खदुन्दुभिजध्वनिः। व्यापयन् रोदसी चेतः, इलादयन् प्रससार च // 14 // अश्रुतापूर्वनादेन, नगरी रमणीगणः। स्वानि कार्याणि सन्त्यज्य, प्रचेलुर्भवनात्त्वरा // 15 // आगच्छन्त्यश्च ता नार्यों, विविधोत्तमश्चेष्टया। जनान् विस्मापयामासु-मनोमोहनचञ्चवः // 16 // यतः-तिनिवि थी वल्लहां, कलि कज्जलसिंदूर / ए पुण अतिहिवल्लहाँ दुध जमाई तूर // 1 // // अथ तासांश्चेष्टा वर्णनम् // गेहे स्थिताः का अपराः प्रयान्त्यः, प्रौत्कण्ठयभाजः सकला बभूवुः // चक्रुः विलोम्ना च निजीयमेताः, शृङ्गारमाहास्यकरम्विचित्रम् // 1 // HT191 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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