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________________ श्री कल्पमुकवल्यां विवाहसम्बन्धः // 18 // आडम्बरोऽसारपदार्थकस्य, जाजायतेऽपूर्वइहातिचित्रम् रावो यथा कर्णकुटीरगामी, कांस्ये तथा नोऽमलहेमराशौ // 45 // इति चिन्तापरं विप्रं, प्रोवाच विबुधाधिपः, केवलं नरबुध्याऽसौ, त्वया शङ्कयो न भूसुर ! // 46 // त्रिलोकीनायकश्चैष, सर्वशास्त्र विशारदः, तीर्थनाथोऽन्तिमो ज्ञेयो, महावीर इति श्रुतः // 47 // स्तुत्वैवञ्जिननायक, सुरपतिर्विप्राकृतिः स्वयंयौ, शालायां विविधागमार्थनिपुणं सम्भूषितायाञ्जनः श्रीमद्वीरजिनोऽपि गीतसुयशा ज्ञातान्वयैः क्षत्रिय, भैजे धाम निजीयमच्छमतुलं संसेव्यमानो मुदा // 48 // // इति लेखशाला प्रकरणम् // // अथ विवाह सम्बन्धः // बाल्यावस्थां निखिलसुखदां यापयित्वा जिनेन्द्रः, क्रमाल्लेभे मदननिलयं यौवनं खं यथाऽर्कः / पित्रोश्चिन्ता परिणयविधौ वीक्ष्य भोगादियोग्य, श्रीमद्वीरं समजनि सुताऽन्वेषिता शीघ्रमेव // 49 // पुत्री चासीत्समरनृपतेराख्यया यशोदा, दिव्याकारा गुणगणखनिश्चैतया सार्द्धमस्य पित्रा चक्रे परिणयमहो भूरिवित्तव्ययेन, योग्यस्थाने कृतपरिणय-श्रेयसे कस्य न स्यात् ? // 50 // सुखं संसारिकं सत्रा, भुञ्जानस्य तया सह, कन्यैका विमला जाता, नाम्ना या प्रियदर्शना // 51 // प्रणायिता च सा स्वस्य, भाग्नेयेन जमालिना, तस्या अपि च सञ्जज्ञे, नाम्ना शेषवती सुता // 52 //
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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