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________________ श्री कल्पमुह तायल्यां शकेन्द्रका जन्माभिषेकाधिकारः ब्रह्माण्डभेदोपमशब्दताने, चाशामुखेष्वाशु विजृम्भमाणे // बिभ्युश्च देवा सुरपोऽपि मन्यु, चक्रे बली प्रेतपतीव भीमः // 60 // काले प्रशान्ते किलकेन चक्रे, विघ्नोऽवधेर्विज्ञतमोऽधिगम्य // क्षन्तव्य एषोऽतुलवीर्यशालिन् ? सम्प्रोचिवान् तीर्थपलोकनाथम् // 6 // सङ्ख्याऽतिगानाञ्जिनपुङ्गवाना, म्मध्ये न केनापि पदा सुमेरुः // सम्पीडितो हर्षवशेन शक्रो, नृत्यंचकारातिप्रभोः पुरस्तात् // 62 / / शैलेषु मे राज्यमभूद्विशिष्टम् , स्नात्रीय नीरात्यभिषेककेण // तेनास्य हारा अमरा बभूवुः, सामाज्जिनः स्वर्णविभूषणश्च // 6 // दुर्दान्तवीर्या इह तीर्थनाथा, शान्तस्वभावा जगतीत्रयेशाः // एतर्हि मे ज्ञातमहो भवन्ति, याचे क्षमा भो जिनराड् भवन्तम् // 64 // तत्राभिषेकम्विदधाति पूर्व, नाम्नाऽच्युतेन्द्रः क्रमशस्ततोऽन्ये // भक्त्याऽभिषेकम्विदधुजिनस्य, इन्द्रा स्तथेन्द्रर्कमुखाः सुरौघाः // 65 // १तुर्येक्षरूपाणि मनोहराणि कृत्वाऽभिषेकम्विदधे च शक्रः // शृङ्गाष्टकैः क्षीरप्रवाहसौम्य, रानन्दहृच्चान्तिमतीर्थपस्य // 66 // 1 चतुर्वृषभरूपाणि // 158
SR No.600451
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvimalsuri
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size40 MB
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