________________ श्री कल्पमु कावल्यां शकेन्द्रकृत जन्माभिवेकाधिकारः // 156 // ज्योतिष्कसंज्ञौ सुरपो तथा द्वौ चैवं भिलित्वोदधिषष्टिसंख्याः॥ इन्द्राः समस्ताः प्रभपादमूल,-अग्मु मुरारेरिव भक्तवर्गाः // 47 // युग्मम् // जन्माभिषेकाय जिनेश्वरस्य, शास्त्रोक्तरात्याविविध प्रकारम् // . नाम्नाऽऽभियोगीतिसुरैस्तदानी-मानाययद्वस्तुकमच्युतेन्द्रः // 48 // १सौवर्ण रौप्योत्तमरात्न ३कुम्भाः सौवर्ण रौप्या आपि रात्नरौक्माः५ // एवश्च रूप्योत्तमरत्न दृब्धा,६ वैधातुदृदब्धा' अपि मार्तिकाश्च // 49 // प्रत्येकमष्टाधिककं सहस्र, कुम्भावरा योजनवक्त्रवन्तः॥ भृङ्गारकादर्शकरत्नकण्ड, स्थालादिपात्राणि तथा सुमानाम् // चङ्गेरिका-पूजनवस्तुजात, मष्टप्रकारङ्कलशोपमानम् // 50 // प्रत्येकमष्टोत्तरकं सहस्रं, तत्रानयामास महाऽच्युतेन्द्रः॥ सन्मागध्याधुत्तमतीर्थकानां, सन्मृत्तिकां वारि प्रशंसनीयम् // 51 युग्मम् // गङ्गादिसंज्ञीयमहानदीना-मेवम्पयोजानि जलानि चापि // पग्रहदानामपद्मनीरे, स्वान्ताक्षिप्रमोदप्रदेऽमराणाम् // 52 // 1 पुष्पाणम् 2 कलशवत् अष्टप्रकारकमिति /