________________ श्री कल्पमु कापल्या शकेन्द्रकृत जन्माभिषेकाधिकारः आगच्छतां मूर्धसु खे सुराणाम् , कान्तैः स्थितैश्चन्द्रगभस्तिजालैः // ते निर्जराः सन्त उ लक्षिता वै, कामञ्जराभिः सहिताः समन्तात् // 33 // तारा च शीर्षे कलशोपमीया, ग्रैवेयकल्पाश्च बभुः सुकण्ठे // देहे तथा स्वेदकबिन्दुवच्च, क्षोणीतलेऽवातरतां हि एषाम् // 34 // प्रादक्षिणां त्रिः प्रथमं विधाय, भक्त्या जिनस्याथ तदीय मातुः॥ कृत्वा विनम्रो वरवंदनादि-मित्थं जगादेष शुचिः शचीशः // 35 // सद्रत्नकुक्षि धरिके त्रिदीपे ते मे नमो मातरिहाऽस्तु भद्रे // शक्रेन्द्रनामा सुरराजिनाथ, श्चास्मीति कल्पात्प्रथमादिहैम // 36 // मातस्त्वदीयान्तिमतीर्थनाथस्याहम्वरञ्जन्ममहम्विधातुम् // अत्रागमभीतिरतो न कार्या निद्रान्ददौ स्वापिनिकान्ततोऽसौ // 37 // कृत्वाऽतिरम्यम्प्रतिबिम्बमादौ भक्त्या विभोर्मातरधात्समीपे॥ धृत्वा प्रभुम्पाणिपयोजकोषे रूपाणि पञ्चैष ततोऽभिचक्रे // 38 // सम्पूर्णलाभोऽत्र ममैत्र याभूजन्माभिऽषेके च जिनेश्वरस्य / रूपाणि पश्चैष ततोऽभिचक्रे भाग्येन लभ्यो महतैषकालः // 39 / / 1 त्रिलोक प्रकाशित // 154 //