________________ श्री कल्पमु. कावल्यां शक्रेन्द्रकृत जन्माभिवेकाधिकारः // 153 / / दीप्यद्विमानैर्बहुकोटिसङ्गयै- नाप्रकारैरपि वाहनैश्च // वैशालमाकाशमहो तदानीं, सङ्कीर्णभावं नितराम्बिभेजे // 26 // सङ्कीर्णमार्गे बहवः प्रवीणा मित्राणि' देवा परितो विहाय // कृत्वा धुरि स्वोत्तमवाहनानि, चेलुर्मुदा जन्ममहार्थमेते // 27 // ईष्याकुला एवमिमे सुधाशाः, प्रातस्थिरे सत्वरमुत्कभावाः // कश्चिच्च मित्रं प्रति सम्बभाण, विश्रम्यतां मित्र ! मदीयहेतोः // 28 // प्रत्युत्तरं सोऽपि जगाद दक्षः, काले सुपुण्ये किल को विलम्बम् // कुर्यादतो यामि यतः प्रभूणां, सदर्शनश्चारु भवेत् सुखेन // 29 // हेतोरमुष्मान च मित्र,१ ईषत् , स्थातुं समर्थः प्रभुदर्शनेह // इत्यं निगद्यैष सुरस्त्वराऽतो, मित्रम्विनाऽपि प्रययौ पुरस्तात् // 30 // सद्वेगशालिस्थिरवाहनीया, वायोजवाश्चापि विडम्बयन्तः // सङ्कीर्णमार्गेऽपि विलासगत्या, शीघ्रातिशीघश्च डुढौकिरे ते // 31 // ग्लानिम्परे प्रापुरवेगवाहा-स्तान् बोधयामासुरतुच्छबाहाः / पर्वीयकाले खलु वासराणि, सङ्कीर्णवन्ति प्रभवन्ति मित्राः // 32 // // 153 //